पूज्य श्री राजन जी महराज के द्वारा कहे जा रहे श्री राम कथा के पांचवे दिवस सीता स्वयंवर की कथा सुन भावविभोर हुए श्रोता,लगाए श्रीराम के जयघोष

ऑपरेशन टाईम्स सिंगरौली।। सिंगरौली जिला मुख्यालय बैढ़न में सुप्रसिद्ध कथा वाचक पूज्य श्री राजन जी महाराज के मुखारबिंद से दिव्य संगीतमयी श्रीराम कथा का वाचन किया जा रहा है वही पंचम दिवस शनिवार को बैढ़न में हज़ारों दर्शक श्रोतागण श्री रामकथा को देख व सुन मंत्रमुग्ध हुए धार्मिक आयोजन में हर तरफ उत्साह का माहौल छाया रहा। कथा वाचक पूज्य श्री ने कहा कि श्री राम के आदर्शों के साथ सभी लोग सीता माँ के व्यक्तित्व से सीख लेने की आवश्यकता है। कथा को आगे बढ़ाते हुए कहा कि राजा जनक के दरबार में जब राम-लक्ष्मण दोनों भाई पहुंचे तो उन्हें देख मिथिलावासी आश्चर्य चकित हो गए। सीता की सखियां तरह-तरह की बातें कर रही थी। क्योंकि सीता के विवाह के लिए धनुष तोड़ने की शर्त रखी गई थी। और सीता स्वयंवर में एक से बढ़कर एक राजा और महाराजा आए हुए थे। सीता जैसी सुंदर नारी को पत्नी रूप में पाने के लिए मनुष्य ही नहीं बल्कि कई देव तथा असुर भी मानव रूप धारण करके स्वयंवर में आए हुए थे। राजा जनक ने सभी को अपनी शर्ते सुनाई और आप सभी राजाओं का मेरी पुत्री सीता के स्वयंवर में स्वागत है। आज इस स्वयंवर को जीतने की शर्त यह है कि जो भी महारथी भगवान शिव के पिनाक धनुष को उठाकर उस पर प्रत्यंचा चढ़ाएगा उसी से मेरी पुत्री सीता का विवाह संपन्न होगा। राजा जनक की यह घोषणा सुनकर सभी राजा एक-एक करके आते हैं और धनुष को उठाने का प्रयास करते हैं। लेकिन भगवान शिव के उस धनुष को उठाना या प्रत्यंचा चढ़ाना तो दूर कोई भी राजा महाराजा उस धनुष को तिल भर नही हिला सका महाराजा जनक को क्रोध आ गया। उन्हें लगा कि कोई भी इस शिव धनुष को उठा नहीं पाएगा और उनकी पुत्री सीता अविवाहित ही रह जाएंगी। यही सोचकर उन्होंने वहां उपस्थित सभी राजाओं से कहने लगे कि क्या इनमे से कोई भी लायक पुरुष नहीं रहा जो शिव धनुष का उठा सके।
राजा जनक की ऐसी अपमानजनक बातें सुनकर लक्ष्मण जी को क्रोध आया और वह इसे श्रीराम तथा रघुकुल का अपमान समझते हुए राजा जनक को ललकारने लगते हैं कि वह उनके तथा श्रीराम के सभा में होते हुए पूरी सभा को अयोग्य कैसे घोषित कर दिया। तब ऋषि विश्वामित्र ने लक्ष्मण जी को शांत कराया और श्री राम को धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाने के लिए आज्ञा दी। श्रीराम विनम्र भाव से ऋषि विश्वामित्र जी को प्रणाम करके शिव धनुष की तरफ बढ़ते हैं तो वहां पर उपस्थित राजा उनका उपहास करने लगते हैं।
लेकिन भगवान विष्णु के अवतार श्री राम सहर्ष भाव से शिव धनुष को प्रणाम करते हैं और केवल अपने एक ही हाथ से शिव धनुष को उठा लेते हैं जिसे देखकर वहां उपस्थित सभी राजा हैरान रह जाते हैं। तभी श्री राम धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ा कर उसकी डोरी को जैसे ही खींचा की शिव धनुष टूट जाता है और स्वयंवर की शर्त के अनुसार देवी सीता और श्री राम का विवाह हो जाता है। माता सीता श्री राम को वरमाला पहनाती हैं श्रीराम को अपने पति के रूप में स्वीकार करती है।
राजा जनक ऋषि विश्वामित्र को बधाई देते हुए उनका अभिनंदन करते हैं तथा श्री राम और देवी सीता के विवाह के आगे के कार्यक्रम के बारे में पूछते हैं। ऋषि विश्वामित्र राजा जनक को कहते हैं कि हे राजन यह विवाह तो शिव धनुष के अधीन था। धनुष टूटते ही विवाह तो हो चुका है लेकिन फिर भी अपने कुल के रीति रिवाज के अनुसार ही आगे का कार्यक्रम करवाए। ऋषि विश्वामित्र के कहने पर जनकपुरी से राजा दशरथ के पास सन्देश भेजा जाता है। तथा उसके बाद दोनों परिवारों के द्वारा विचार करके उसी मंडप में राजा दशरथ के चारो पुत्रो का विवाह राजा जनक की चारो पुत्रियों से निश्चित कर दिया जाता है। जिसमे श्रीराम के साथ देवी सीता, भरत के साथ मान्ध्वि, लक्ष्मण के साथ उर्मिला, तथा शत्रुघ्न के साथ श्रुतिकीर्ति का शुभ विवाह संपन्न हुआ।