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दो साल में भारत-यूएई व्यापार दोगुना, 83.7 बिलियन डॉलर तक पहुंचा

ऑपरेशन टाईम्स नई दिल्ली।। भारत और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के बीच व्यापारिक संबंध लगातार मजबूत हो रहे हैं। वाणिज्य – एवं उद्योग मंत्रालय के मुताबिक पिछले दो वर्षों में – भारत-यूएई का द्विपक्षीय व्यापार लगभग दोगुना होकर 83.7 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया है। – वित्त वर्ष 2020-21 में यह व्यापार 43.3 बिलियन – डॉलर था जो 2023-24 में तेजी से बढ़ा। मंत्रालय – के मुताबिक चालू वित्त वर्ष में अप्रैल से दिसंबर 2023 तक केवल 9 महीनों में ही यह व्यापार 71.8 – बिलियन डॉलर तक पहुंच गया है। स्मार्टफोन इस व्यापार में एक महत्वपूर्ण उत्पाद बनकर उभरा है। वित्त वर्ष 2023-24 में यूएई को 2.57 बिलियन डॉलर मूल्य के स्मार्टफोन निर्यात किए गए। भारत और यूएई के बीच व्यापक आर्थिक – भागीदारी समझौता 1 मई 2022 को लागू हुआ था। यह समझौता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और यूएई के राष्ट्रपति शेख मोहम्मद बिन जायद अल नाहयान – के बीच हुए वर्चुअल शिखर सम्मेलन के दौरान हुआ था। इस समझौते का उद्देश्य व्यापार को बढ़ावा देना और दोनों देशों की अर्थव्यवस्थाओं को मजबूत – करना था। CEPA लागू होने के बाद, भारत-यूएई व्यापार का दायरा केवल तेल तक सीमित नहीं – रहा। वित्त वर्ष 2023-24 में गैर-तेल व्यापार 57.8 = बिलियन डॉलर तक पहुंच गया, जो कुल व्यापार का आधे से अधिक हिस्सा है। सरकार का लक्ष्य 2030 तक इस गैर-तेल व्यापार को 100 बिलियन डॉलर तक ले जाना है। भारत के गैर-तेल निर्यात में भी जबरदस्त बढ़ोतरी देखी गई है। वित्त वर्ष 2023-24 में यह 27.4 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया जो 25.6% की औसत वृद्धि दर्शाता है। इसमें रिफाइंड कच्चे तेल उत्पादों और रत्न-आभूषण के अलावा इलेक्ट्रिकल मशीनरी, बॉयलर, जनरेटर, रिएक्टर और कार्बनिक आकार्बनिक रसायनों का प्रमुख योगदान रहा। CEPA लागू होने के बाद, दोनों देशों की सरकारें व्यापारिक बाधाओं को दूर करने के लिए लगातार बैठकें कर रही हैं। माल व्यापार समिति ने व्यापार से जुड़े मुद्दों को हल करने के लिए कई बार बैठक की है। इसके अलावा, सीमा शुल्क प्रक्रिया, व्यापार सुविधा और सेवा व्यापार को लेकर भी ठोस कदम उठाए गए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा दुबई में “भारत मार्ट” पहल की शुरुआत की गई जो भारतीय निर्माताओं के लिए वैश्विक बाजारों में अपने उत्पादों को प्रदर्शित करने का एक प्रमुख प्लेटफॉर्म बनेगा। इस समझौते का सबसे बड़ा लाभएमएसएमई (छोटे और मध्यम उद्योगों) को हुआ है। इससे छोटे व्यवसायों को नई संभावनाएं मिली हैं, जिससे रोजगार के अवसर बढ़े हैं और दोनों देशों के बीच आर्थिक सहयोग को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया गया है।

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