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भोपाल में नाबालिग से दुष्कर्मः एबीवीपी के पूर्व संगठन मंत्री भगवान सिंह मेवाड़ा पर FIR, कांग्रेस ने पुलिस पर साधा निशाना

मऊगंज में पास्को और एससी-एसटी एक्ट के तहत मामला दर्ज, पीड़िता के परिवार ने जताई जान का खतरा

ऑपरेशन टाईम्स रीवा।। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के पूर्व संगठन मंत्री भगवान सिंह मेवाड़ा पर नाबालिग आदिवासी लड़की ने दुष्कर्म के गंभीर आरोप लगे हैं। इस मामले में मऊगंज पुलिस ने पॉस्को एक्ट, एससी-एसटी एक्ट और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज किया है। घटना भोपाल के रवींद्र भवन की पार्किंग में हुई थी लेकिन वहां केस दर्ज न होने पर पीड़िता ने अपने गृह जिले में न्याय की गुहार लगाई।

कांग्रेस ने पुलिस पर उठाए सवाल—
इस पूरे मामले में कांग्रेस ने पुलिस प्रशारान पर लापरवाही बरतने का आरोप लगाया है। कांग्रेस नेता विक्रम भूरिया ने कहा पुलिस ने पहले पीड़िता की शिकायत को गंभीरता से नहीं लिया।

क्या मिलेगा आदिवासी परिवार की न्याय—?
प्रभाव के कारण पुलिस चुप्पी साधे रही? कांग्रेस की प्रदेश उपाध्यक्ष कविता पांडे ने भी सवाल उठाते हुए कहा यह घटना राज्य की कानून-व्यवस्था के लिए एक चुनौती है। अब देखना यह है कि क्या एक आदिवासी मजदूर परिवार को न्याय मिलेगा या फिर आरोपी की राजनीतिक पहुंच के चलते गामला ठंडे बस्ते में डाल दिया जाएग?

पीड़िता के पिता ने बयां किया दर्द—
पीड़िता के पिता ने मीडिया से बात करते हुए कहा मेरी बेटी बहुत डरी हुई थी। उसने हिम्मत जुटाकर हमें पूरी घटना बताई। आरोपी प्रभावशाली व्यक्ति है और हमें डर है कि वह हमारे परिवार को नुकसान पहुंचा सकता है। हम बस न्याय चाहते हैं। परिवार ने आरोप लगाया कि आरोपी भगवान सिंह गेवाड़ा का राजनीतिक रबरख इतना ज्यादा है कि पुलिस भी कार्रवाई करने से बच रही थी। एडिशनल एसपो अनुराग पांडे ने बताया कि भगवान सिंह मेवाड़ा और एक अन्य आरोपी के खिलाफ विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया है। पुलिस ने आईपीसी की धाराएं 70 (2), 63, 64 (1)(2), 65(1), 296, 115, 351(2) पास्को एक्ट की धारा 3/4 , एससी-एसटी एक्ट से संबंधित धाराओ में मामला दर्ज किया है। वहीं एडिशनल एसपी ने आश्वासन दिया कि जांच तेजी से की जा रही है और दोषियों को जल्द गिरफ्तार कर कड़ी कार्रवाई की जाएगी। घटना के बाद से पूरे इलाके में गुस्से का माहौल है। स्थानीय लोगों और सामाजिक संगठनों ने प्रशासन से निष्पक्ष जांच की मांग की है। सवाल यह है कि क्या इस बार एक आदिवासी परिवार को राही गायनों में न्याय मिलेगा या फिर तत्ता और प्रभावशाली लोगों के दबाव में यह मामला भी ठंडे बस्ते में चला जाएगा? देखना होगा कि प्रशासन इस संवेदनशील मामले में कितनी जल्दी और कितनी सख्ती से कार्रवाई करता है।

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