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योजनाओं का 1.40 लाख करोड़ खर्च नहीं कर पाईं राज्य सरकारें

ऑपरेशन टाईम्स नई दिल्ली एजेंसी।। केंद्र सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता वाली योजनाओं में जो राशि आवंटित की गई थी। उस राशि को राज्य सरकारें खर्च नहीं कर पाई। बड़े पैमाने पर बेरोजगारी के होते हुए भी सरकारी योजनाओं का धन बैंकों में जाम पड़ा रहा। प्रधानमंत्री आवास जल जीवन योजना, अमृत योजना, स्वच्छ भारत योजना तथा पोषण आहार के लिए आंगनबाड़ी पोषण योजना का पैसा राज्य सरकारें खर्च नहीं कर पाई। केंद्र सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता वाली योजनाओं का पैसा खर्च नहीं हो पाना केंद्र और राज्य सरकार की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान लगाता है। केंद्र सरकार विभिन्न योजनाओं के तहत राज्य सरकारों को भारी भरकम बजट आवंटित करती है। यह चिंता का विषय है। राज्यों को दी गई 1.40 लाख करोड़ रुपये की राशि राज्य सरकारें खर्च नहीं कर पाईं। यह प्रशासनिक उदासीनता, नीतिगत विफलता और संसाधनों के कुप्रबंधन का सबसे बड़ा उदाहरण है। अक्टूबर 2023 तक विभिन्न सरकारी योजनाओं में आवंटित बजट की राशि के यह आंकड़े बताते हैं कि केंद्र सरकार के बजट से मिली राशि का राज्यों द्वारा उपयोग नहीं किया गया। इसका असर गरीब और वंचित वर्गों पर पड़ता है। जो इन योजनाओं से लाभ पाने के हकदार थे। कई बार योजनाओं की स्वीकृति, टेंडर प्रक्रिया और कार्यान्वयन में देरी के कारण बजट की राशि खर्च नहीं हो पाती है। नौकरशाही की उदासीनता, भ्रष्टाचार, पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी से विकास योजनाओं का क्रियान्वय समय पर नहीं हो पता है और बजट की राशि लैप्स हो जाती है। जिससे योजनाएं महज कागजी बनकर रह जाती हैं। केंद्र और राज्य सरकारों के बीच समन्वय की कमी से भी योजनाओं का काम सही तरीके से नहीं हो पाता है। केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को इसके लिए जिम्मेदारी तय करनी होगी। राज्यों को अधिकारियों को जिम्मेदार बनाना होगा। जो राज्य केंद्र द्वारा आवंटित बजट की राशि को खर्च नहीं कर पाते हैं। उन राज्यों पर विशेष निगरानी की व्यवस्था शुरू करनी चाहिए। योजनाओं के फंड की रियल-टाइम मॉनिटरिंग सुनिश्चित की जानी चाहिए। संबंधित अधिकारियों को योजनाओं की मंजूरी और कार्यान्वयन में आने वाली बाधाओं के लिए प्रशासनिक सुधार किए जाने चाहिए। जिला और ग्राम पंचायत स्तर पर योजनाओं के क्रियान्वयन को निर्धारित समय में पूरा करने के लिए संसाधन बढ़ाना होगा। राज्य सरकारें केंद्र सरकार की योजनाओं का 1.40 लाख करोड़ रुपये की राशि खर्च नहीं कर पाई हैं। तो इसके पीछे कोई बड़ा कारण भी हो सकता है। कई बार यह भी देखने में आया है कि केंद्र एवं राज्य सरकार बजट आवंटित कर देती हैं लेकिन ट्रेजरी बिल में संतुलन बनाए रखने के लिए राशि खर्च करने के लिए समय-समय पर प्रतिबंध भी लगाती हैं। जिसके कारण बजट में राशि होने के बाद भी विभाग को राशि खर्च करने के लिए ट्रेजरी से आवंटित नहीं होती है। यह मामला सरकारी धन को समय पर खर्च न करने और भ्रष्टाचार भर का मामला नहीं है। समाज के कमजोर वर्गों को इसका सबसे बड़ा नुकसान होता है। आवास, पानी, पोषण और स्वच्छता जैसी मूलभूत सुविधाओं की राशि खर्च नहीं हो पाई। यह एक तरह से गरीबों के साथ खिलवाड़ है। केंद्र और राज्य सरकारें मिलकर इस समस्या का समाधान करें। सुनिश्चित करें कि कोई भी योजना महज कागजों में सीमित न रह जाए। आम जनता को भी ध्यान रखना होगा। बजट में उनके लिए जो राशि आवंटित की गई है। उसका सही उपयोग हो रहा है या नहीं। जनता जब तक अपने अधिकारों के प्रति जागरूक नहीं होगी। तब तक ऐसी ही स्थिति बनी रहेगी। सरकारें बजट में तो बड़े-बड़े प्रावधान करेंगी लेकिन उन पर पैसा खर्च नहीं किया जाएगा। पिछले कुछ वर्षों में यह स्थिति बड़े पैमाने पर देखने को मिल रही है। विभागों के पास बजट में पैसा होने के बाद भी वह राशि खर्च क्यों नहीं हो पा रही है। इसके लिए विभागों को और सरकारों को जिम्मेदार बनाया जाना आवश्यक है।।

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