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मदरसा शिक्षा पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला

नई दिल्ली एजेंसी।। मंगलवार 5 नवंबर को भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए उत्तरप्रदेश मदरसा अधिनियम 2004 की मान्यता बरकरार रखी है। दरअसल इसी साल 22 मार्च को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने मुलायम सिंह सरकार द्वारा बनाए गए इस अधिनियम को असंवैधानिक करार देते हुए धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत के खिलाफ बताया था। उच्च न्यायालय के जस्टिस विवेक चौधरी और जस्टिस सुभाष विद्यार्थी की खंडपीठ ने उप्र की योगी आदित्यनाथ सरकार को एक योजना बनाने का निर्देश भी दिया था ताकि वर्तमान में मदरसों में पढ़ रहे छात्रों को औपचारिक शिक्षा प्रणाली में समायोजित किया जा सके। गौरतलब है कि 2004 में बनाए गए मदरसा अधिनियम का मकसद मदरसा शिक्षा को व्यवस्थित करना था। इसमें मदरसा शिक्षा को अरबी, उर्दू, फारसी, इस्लामी अध्ययन, तिब्ब (पारंपरिक चिकित्सा), दर्शन और अन्य विषयों की शिक्षा के रूप में परिभाषित किया गया है। उत्तर प्रदेश में लगभग 25 हजार मदरसे हैं। जिनमें से साढ़े 16 हजार मदरसे उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड की ओर से मान्यता प्राप्त हैं। इनमें से 560 मदरसों को सरकार से आर्थिक मदद मिलती है। इसके अलावा राज्य में साढ़े आठ हजार गैर-मान्यता प्राप्त मदरसे भी चल रहे हैं। मदरसा शिक्षा बोर्ड स्नातक और पोस्ट ग्रेजुएशन की डिग्री देता है। इनको क्रमश कामिल और फाजिल कहा जाता है। हालांकि अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद मदरसे कामिल और फाजिल की डिग्री नहीं दे सकेंगे क्योंकि यह यूजीसी के अंतर्गत आते हैं। मगर मदरसों के छात्र 12वीं तक की शिक्षा पहले की तरह ले सकेंगे। दरअसल यहां मसला इस बात का नहीं है कि बच्चों को कौन सी डिग्री मिल रही है और कौन सी नहीं। असल सवाल उस अधिकार का है। जो संविधान के दायरे में रहकर अल्पसंख्यक समुदाय को दिया गया था लेकिन उसके हनन के खतरे खड़े हो गए थे। मार्च 2024 में अंशुमन सिंह राठौड़ की याचिका पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने जब मदरसा अधिनियम के खिलाफ फैसला सुनाया था। तो इसे धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ बताया था। इस फैसले के बाद उप्र सरकार ने मदरसों के खिलाफ तमाम फरमान जारी कर दिए थे। मदरसों की मनमानी जांच शुरू कर दी गई। हालांकि इन सभी मदरसों में आधुनिक शिक्षा दी जा रही थी लेकिन सरकार ने अपना आदेश जारी कर यह भी प्रचारित किया कि मदरसों में आधुनिक शिक्षा नहीं दी जा रही। जबकि मदरसों के छात्र धार्मिक तालीम के साथ-साथ इतिहास, भूगोल, गणित और विज्ञान आदि उर्दू या अरबी के जरिए पढ़ते हैं। इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ कई याचिकाएं दायर की गई। इनमें अंजुम कादरी, मैनेजर्स एसोसिएशन मदरिस अरबिया (उप्र), ऑल इंडिया टीचर्स एसोसिएशन मदरिस अरबिया (नई दिल्ली), मैनेजर एसोसिएशन अरबिया मदरसा नए बाजार और टीचर्स एसोसिएशन मदसिर अरबिया कानपुर शामिल थे।याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि इस फैसले में अल्पसंख्यकों के अधिकारों के लिए बनाए गए संविधान के अनुच्छेद 30 पर भी ध्यान नहीं दिया गया। जो धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों को शैक्षिक संस्थानों की स्थापना और प्रशासन के अधिकार की गारंटी देता है।

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