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न्यायपालिका के पर कतरने की तैयारी, लोकपाल का पावरफुल ?

नई दिल्ली।। लोकपाल ने दो शिकायतों के आधार पर हाईकोर्ट के एक मौजूदा अतिरिक्त जज के खिलाफ जांच शुरू कर दी थी। लोकपाल ने एक निजी कंपनी के पक्ष में फैसला देने के लिए राज्य के एक जिला जज और हाईकोर्ट के एक जज के खिलाफ जांच शुरू की थी। लोकपाल एएम खानविलकर ने शिकायत पर जांच शुरु की थी। 27 जनवरी को लोकपाल के आदेश पर हाईकोर्ट के जज को लोकपाल अधिनियम की धारा 14 (1) एफ के तहत संस्था का हिस्सा मानते हुए लोकपाल ने जांच शुरू कर दी थी। लोकपाल के इस फैसले पर सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति बीआर गवई, न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति अभय एस ओक की खंडपीठ ने लोकपाल के तर्क पर असहमति जताई है। तीन जजों की खंड पीठ ने कहा संविधान लागू होने के बाद से हाईकोर्ट के सभी जज संवैधानिक पदाधिकारी हैं। इन्हें कानूनी संस्था का हिस्सा नहीं माना जा सकता है। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता का कहना था कि लोकपाल ने व्याख्या गलत की है। हाईकोर्ट के जज लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम 2013 के अंतर्गत नहीं आते हैं। इस मामले को सुप्रीम कोर्ट ने स्वयं संज्ञान में लिया था। गुरुवार को लोकपाल के आदेश पर रोक लगाते हुए खंडपीठ ने अपने फैसले में कहा यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता से जुड़ा हुआ मामला है। खंडपीठ ने केंद्र सरकार, लोकपाल के रजिस्टर और शिकायतकर्ता को नोटिस जारी किया है। इस मामले की अगली सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में अब 18 मार्च को होगी। लोकपाल द्वारा जिस तरह से हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों को निशाने पर लिया है। यह माना जा रहा है कि केंद्र सरकार के इशारे पर लोकपाल ने हाईकोर्ट जज के खिलाफ जांच शुरू की है। शायद सरकार यह देखना चाहती थी कि लोकपाल के जरिए हाईकोर्ट और सुप्नीमकोर्ट के उन जजों के ऊपर शिकंजा कसा जा सकता है या नहीं। जैसे ही लोकपाल ने कार्रवाई शुरु की। सुप्रीम कोर्ट ने स्वयं संज्ञान लेकर इस मामले की सुनवाई शुरू कर दी। हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों को शायद यह समझ में आ गया है। लोकपाल के जरिए अब उनके ऊपर शिकंजा कसने की तैयारी सरकार द्वारा की जा रही है। पिछले कई वर्षों से सुप्रीमकोर्ट और हाईकोर्ट स्वयं संज्ञान लेकर सुनवाई करना भूल गई थी। लोकपाल के मामले में जिस तरह से सुप्रीम कोर्ट ने स्वयं संज्ञान लेकर लोकपाल के आदेश पर रोक लगाते हुए इस मामले की सुनवाई शुरू की है। उससे इतना तो स्पष्ट है कि सुप्रीमकोर्ट और हाईकोर्ट के जज अपने अधिकारों, निजी सुरक्षा और न्यायपालिका की स्वतंत्रता को लेकर चिंतित हो गए हैं। न्यायपालिका का रुख आगे चलकर क्या होगा? कहना मुश्किल है। 2014 के बाद से केंद्र में जो सरकार है। वह हाईकोर्ट के जजों की नियुक्ति और पदोन्नति इत्यादि को लेकर सरकार एवं कालेजियम के बीच कई बार टकराव देखने को मिला है। जजों की नियुक्ति के पूर्व सरकार जांच एजेंसियों के माध्यम से बहुत सारी जानकारी जजों के बारे में एकत्रित कराती है। न्यायपालिका इन दिनों सरकार के दबाव में है। इससे इनकार नहीं किया जा सकता है। जब न्यायपालिका के गले में लोकपाल के माध्यम से फंदा कसा जा रहा है। ऐसी स्थिति में न्यायपालिका अब अपने बचाव में आ गई है। वर्तमान लोकपाल मुख्य न्यायाधीश सुप्रीम कोर्ट के पद पर रह चुके हैं। वह भी इस खेल को जानते हैं। सरकार के चहेते जग रहे हैं। उन्होंने कई बार सरकार को मुश्किलों से बचाया है। जिस तरह की स्थिति वर्तमान में न्यायपालिका की है। उसको लेकर लोकपाल को लेकर तरह-तरह की चर्चाएं होने लगी हैं।

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