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भारत की जीत है तहव्वुर राणा का प्रत्यर्पण

ऑपरेशन टाईम्स नई दिल्ली।। नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा के दौरान साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 2008 के मुंबई हमलों के आरोपी तहव्वुर राणा को भारत को सौंपने का ऐलान किया। यह घोषणा करते हुए ट्रंप ने तहव्वुर राणा को दुनिया के सबसे खतरनाक षड्यंत्रकारियों में बताया है। चौंसठ वर्षीय तहव्वुर राणा पाकिस्तान में जन्मा कनाडाई नागरिक है। पूर्व पाकिस्तानी आर्मी मेडिकल ऑफिसर राणा 1990 में कनाडा चला गया था और उसने वहां की नागरिकत ले ली थी। उसी ने डेविड कोलमैन हेडली को मुंबई हमले के ब्योरे दिये थे। जिसमें 166 लोग मारे गये थे। मुंबई हमले में राणा की लिप्तता बाद में हेडली की गवाही से साबित हुई। वर्ष 2009 में अमेरिका में गिरफ्तारी के बाद राणा को डेनमार्क में आतंकी साजिश और लश्कर-ए-तैयबा को मदद देने के मामले में 2011 में दोषी ठहराया गया था। वर्ष 2023 में 14 साल की सजा पूरी करने के बाद से वह लास एंजिल्स के एक महानगरीव हिरासत केंद्र में निगरानी में है। ट्रंप ने राणा को भारत को सौंपने का ऐलान करके नयी दिल्ली को खुश कर दिया है। हालांकि ट्रंप ने यह निर्णय अमेरिका के हित में लिया है कि वह दूसरों के मामलों में दखल नहीं देगा। राणा को भारत सौंपने के फैसले पर टिप्पणी करते हुए ट्रंप प्रशासन ने यह भी कहा कि हम लंबे समय से चाहते रहे हैं कि मुंबई हमले की योजना बनाने वालों को सजा मिले। देर से ही सही राणा को भारत के सुपुर्द करना आतंकवाद के खिलाफ भारत की जीत है। लेकिन सच्चाई यह भी है कि 26/11 के बाद अमेरिका ने जब तहव्वुर राणा को गिरफ्तार किया था। तभी अगर वह उसे भारत को सौंप देता। तो उसका हमें ज्यादा लाभ होता। क्योंकि तब कसाब हमारे कब्जे में था और पाकिस्तान पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ रहा था। यहां यह याद किया जा सकता है कि राणा की जब अमेरेका में गिरफ्तारी हुई थी। तब भारत ने उसके प्रत्यर्पण के लिए बहुत दबाव डाला था। लेकिन तब अमेरिका ने हमारी बात नहीं मानी थी। उसकी एक वजह यह थी कि राणा ने याचिक डाली थी कि उसे दूसरे देश में न भेजा जाए। इसके अलावा राणा की तीन बीवियों में एक अमेरिकी नगरिक थी। जिसके दबाव में अमेरिका ने राणा को भारत भेजने से परहेज किया था। इस बार भी भारत में प्रत्यर्पित किये जाने के विरोध में राणा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका डाली थी लेकिन वह नामंजूर हो गई। मुंबई हमलों के गुनाहगारों में तहव्दुर राणा के साथ डेविड कोलमैन हेडली का नाम भी आता है। हेडली पाकिस्तान में पढ़-लिखकर बड़ा हुआ था और राण से उसकी दोस्ती थी। राणा की इमिग्रेशन एजेंसी थी जबकि हेडली डब्ल एजेंट था। जो अमेरिका और पाकिस्तान दोनों के लिए काम करता था। हेडली की खासियत यह थी कि उसकी दोनों आंखों का रंग अलग-अलग था। इसलिए उसे पहचानना आसान था। मुंबई हमले से पहले हेडली ने राणा की मदद से मुंबई में रेकी की थी। दिल्ली में भी उसने रेकी की थी लेकिन शुक्र है कि राष्ट्रीय राजधानी में अपने खतरनाक मंसूबो को वह अंजाम नहीं दे पाया। हालाकि उसके नतीजे भयावह हो सकते थे और तब शायद पाकिस्तान को उसका अंजाम भुगतना पड़ सकता था। हेडली चूंकि अमेरिकी नागरिक था। इसलिए हम उसे सजा नहीं दे सकते थे। चूंकि 26/11 मुंबई हमलों के आरोपित तहव्वुर हुस्न राणा ने हमले से पहले अपनी पत्नी के साथ हापुड़, दिल्ली, आगरा, कोच्चि, अहमदाबाद, मुंबई आदि का दौरा किया था। ऐसे में बताया यह जा रहा है कि पूछताछ के दौरान वह 13 से 21 नवंबर 2008 के बीच की गयी अपनी इन यात्राओं के बारे में अहम जानकारी दे सकता है। इससे इन यात्राओं की गुत्थी सुलझेगी और मुंबई हमले के मामले में नयी जानकारियां मिलने की उम्मीद है। हालांकि मुझे ऐसा लगता नहीं है कि तहव्वुर राणा को भारत ले आने से 26/11 मामले में कोई बड़ी सफलता हाथ लग सकती है। हमने सबसे बड़ी गलती तो मुंबई हमले में जिंदा पकड़े गये इकलौते आतंकवादी अजमल कसाब को फांसी देकर कर दी। अगर कसाब को जिंदा रखा जाता। तो आज हमें इसका लाभ मिलता। जब कसाब को फांसी दी गई । मैंने तब भी कहा था कि यह फैसल ठीक नहीं। पाकिस्तान तो उससे खुश ही हुआ था कि चलो भारत ने एक बड़ा सबूत खुद ही मिटा दिया। सवाल यह भी है कि तहव्वुर राणा को भारत लाने से पहले क्या बताया गया है कि अजमल कसाब से क्या-क्या जानकारियां हासिल की गयी थीं? देखने वाली बात यह भी है कि जिन लोगों ने 26/11 के आतंकवादी हमले को अंजाम दिया था। उनमें से ज्यादातर अब भी पाकिस्तान में हैं। चाहे वह लश्कर का सरगना हाफिज मोहम्मद सईद हो या जकीउर रहमान लखवी या साजिद मजीद या साजिद मीर। हालांकि उस हमले के दो षड्यंत्रकारी-सईद का साला अब्दुल रहमान मच्की और इलियास कश्मीरी अब जिंदा नहीं है। इसमें भला क्या शक कि मुंबई हमले को प्रायोजित करने के पीछे पाकिस्तानी डीप स्टेट का हाथ था। वास्तव में लेफ्टिनेंट जनरल शुजा पाशा ने जो मुंबई हमले के समय डीजी आइएसआइ थे। वाशिंगटन में पाकिस्तान के राजदूत हुसैन हक्कानी के साथ अमेरिक में हुई मुलाकत में स्वीकार किया था कि लोग हमारे थे। ऑपरेशन हमारा नहीं था। इसका जिक्र हुसैन हक्कानी ने 2017 में भारत-पाकिस्तान संबंधों पर अपनी किताब में किया है। उन्होंने तत्कालीन सीआइए प्रमुख जनरल माइकल हेडन के साथ अपनी बैठक में भी इसका संकेत दिया था क्योंकि उन दिनों पाकिस्तान अमेरिका के वेतन पर पलता था। क्या हम पाकिस्तान को उसके किये की सजा दे सकते हैं? मुंबई हमले के गुनहगरों को सजा दिलाने के मामले में अमेरिका का रवैया भी बहुत कुछ कहता है। क्या अमेरिका इस मामले में सक्रिय भूमिका नहीं निभा सकता था। जबकि हमले में अमेरिकी नागरिक भी मारे गये थे? तब बराक ओबामा ने अमेरिकी राष्ट्रपति के रूप में मुंबई की अपनी यात्रा पर पीड़ितों को श्रद्धांजलि दी लेकिन उस हमले में पाकिस्तान का हाथ होने से इनकार किया। क्योंकि अमेरिका ने आतंकवाद के उस प्रायोजक को अपना गैर नाटो सैन्य सहयोगी चुना था और उसे अपने सैनिकों को अफगानिस्तान में आतंकवादियों से लड़ने के लिए पाकिस्तान के जमीनी मार्गों की आवश्यकता थी। ऐसे में इतने वर्षों बाद राणा को भारत लाये जाने का मतलब तो तभी है। जब मुंबई हमले के गुनहगारों को सजा दी जा सके।।

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