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जानलेवा बीमारियों को न्यौता दे रहा है हवा व पानी में घुलता कोल डस्ट

ऑपरेशन टाईम्स सिंगरौली।। जिले की हवा से लेकर पानी में कोयले की डस्ट घुली है। इसके चलते यहां पर न केवल दमा के मरीज अधिक हैं, बल्कि शुगर, बीपी व स्ट्रेस के अलावा कैंसर का खतरा भी सबसे अधिक है। यह बात हम नहीं कह रहे बल्कि जिला अस्पताल के चिकित्सकों का कहना है कि सिंगरौली के बिगड़े प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए लोगों को आगे आना होगा। सिंगरौली में एक-दो नहीं बल्कि डेढ़ दर्जन से अधिक कोयला खदाने हैं। दूर से नजर आने वाले पहाड़ों की खुदाई में पत्थर व मिट्टी के बाद कोयला ही निकल रहा है। यही वजह है कि कोयले की खुदाई में रिलायंस के बाद अब अडाणी ग्रुप ने भी अपनी कंपनी यहां खोल ली है। लगातार हो रहे कोयले के उत्खनन व परिवहन से उड़ रही धूल (डस्ट) न केवल हवा में बल्कि पानी में भी कुछ इस तरह से घुल रही है कि उसे अलग करना मुश्किल हो रहा है। हवा की डस्ट श्वांस के साथ तथा पानी पीने में घुला कोयला भी शरीर में पहुंचकर आर्सेनिक को बढ़ा रहा है। जिसके चलते सिंगरौली में दमा के मरीजों की संख्या तो बढ़ ही रही है। साथ ही शुगर, बीपी व तनाव के साथ लगातार इस वातावरण में रहने से कैंसर का खतरा भी कई गुना अधिक बढ़ गया है। महत्वपूर्ण बात तो यह है कि जनप्रतिनिधियों से लेकर अधिकारियों तक को यहां हो रहे कोयले के कारोबार में अपनी हिस्सेदारी तो नजर आ रही है, लेकिन हर दिन लोगों के जीवन को कठिन बना रहे दूषित हो चुके वातावरण के सुधार की दिशा में कोई पहल नहीं कर रहा। पिछले दिनों सिंगरौली दौरे पर आए नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने भी प्रेस कॉन्फ्रेंस में यह चिंता जाहिर करते हुए न केवल सिंगरौली को देश का दिल्ली के बाद दूसरा सबसे अधिक प्रदूषित शहर बताया बल्कि इसके लिए उन्होंने स्थानीय मीडिया व जनप्रतिनिधियों को सजग रहकर इस दिशा में काम करने की बात कही थी। सिंगरौली के बलिया नाला से होकर कोयलायुक्त पानी रिहंद डैम में पहुंच रहा है। पूरी तरह से काला हो चुका यह पानी डैम के पानी को भी दूषित कर रहा है। डैम का पानी ही वैढन शहर में सप्लाई होता है। चूंकि कोयले के कण इतने बारीक हैं कि वो हवा में नजर नहीं आते, तो फिर वो फिल्टर प्लांट की मशीनों में भी पानी से अलग न होकर नलों के माध्यम से घरों तक पहुंच रहा है।

पेड़ों के तने व पत्तियां हो गई काली—-
सिंगरौली स्टेशन के आसपास एवं बरगंवा, मोरबा एरिया में तो कोयले की डस्ट उड़ने से वहां न केवल धुंध सी छाई रहती है बल्कि वातावरण को शुद्ध करने वाले पेड़-पौधे भी दूषित हो गए। वहां पर लगे पेड़ों के तने व उनकी पत्तियों पर कोयले की परत जम चुकी है। जिसके चलते इंसानों के साथ-साथ यहां के पेड़-पौधों के अस्तित्व पर भी खतरा मंडरा रहा है। ज्ञात हो कि पेड़-पौधे पत्तियों में मौजूद क्लोरोफिल से ही अपने लिए भोजन बनाते हैं।

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