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ऑपरेशन सिंदूर: भारत के स्वदेशी हथियारों और रक्षा प्रणालियों की चर्चा, अधिक खरीदार होंगे आकर्षित

नई दिल्ली।। भारत ने ऑपरेशन सिंदूर के तहत न सिर्फ पहलगाम आतंकी हमले का बदला लिया बल्कि अपनी ताकतवर सैन्य शक्ति का भी प्रदर्शन किया। पाकिस्तान के खिलाफ सैन्य कार्रवाई में भारत ने रूसी, फ्रांसीसी, इजराइली और स्वदेशी हथियारों और सैन्य हार्डवेयर का इस्तेमाल किया लेकिन चार दिनों तक चली सैन्य कार्रवाई ने भारत को युद्ध जैसा हालात में स्वदेशी हथियारों और रक्षा प्रणालियों का प्रदर्शन करने का दुर्लभ अवसर प्रदान किया। ऑपरेशन सिंदूर दुनिया में भारत निर्मित हथियारों के प्रचार में सहायक हो सकता है क्योंकि भारत ने अपने हथियारों को युद्ध जैसी स्थिति में सफलता के साथ इस्तेमाल किया। आत्मनिर्भर भारत प्रोग्राम के तहत रक्षा विनिर्माण को स्वदेशी बनाने के साथ-साथ भारत एक रक्षा निर्यातक देश के रूप में उभरने की भी कोशिश कर रहा है। भारत लंबे समय से रक्षा उपकरणों का एक प्रमुख आयातक रहा है लेकिन अब आत्मनिर्भरता और शुद्ध निर्यातक बनने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठा रहा है। भारत का रक्षा निर्यात 2024-25 में 23,622 करोड़ रुपये (लगभग 2.76 बिलियन अमेरिकी डॉलर) के रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुंच गया है जो 2023-24 की तुलना में 12.04% की वृद्धि है।
ऑपरेशन सिंदूर ने भारत के स्वदेशी रूप से निर्मित कई हथियारों और हथियार प्रणालियों को सक्षम बनाया है। जो अब दुनिया भर में अधिक खरीदारों को आकर्षित कर सकते हैं। विशेष रूप से छोटे देशों के बीच। ऑपरेशन सिंदूर में खुद को साबित कर चुके इन हथियारों को जानते हैं।

आकाश मिसाइल प्रणाली—
स्वदेशी रूप से विकसित आकाश सतह-से-हवा में मार करने वाली मिसाइल रक्षा प्रणाली है। इसने भारत पर पाकिस्तानी ड्रोन हमलों का मुकाबला करने में अपनी प्रभावशीलता साबित कर दी है। 8 और 9 मई के बीच रात के दौरान भारतीय सेना ने पश्चिमी सीमा के साथ जम्मू-कश्मीर में नियंत्रण रेखा पर पाकिस्तान के कई ड्रोन हमलों के खिलाफ सफलतापूर्वक बचाव किया। रक्षा अधिकारियों ने पुष्टि की है कि आकाश मिसाइल प्रणाली ने भारत के खिलाफ पाकिस्तानी हमलों को सफलतापूर्वक विफल किया। भारतीय सेना और वायु सेना दोनों ने रणनीतिक रूप से पूरे पाकिस्तान सीमा पर इस मिसाइल प्रणाली को तैनात किया है। मिसाइल प्रौद्योगिकी में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के लिए भारत सरकार के एकीकृत निर्देशित मिसाइल विकास कार्यक्रम (IGMDP) के तहत 1980 के दशक में आकाश मिसाइल प्रणाली की उत्पत्ति हुई। अग्नि और पृथ्वी जैसी अन्य प्रमुख परियोजनाओं के साथ आकाश को एक मध्यम-श्रेणी की सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल के रूप में विकसित किया गया था। DRDO ने भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BEL) और भारत डायनेमिक्स लिमिटेड (BDL) के सहयोग से आकाश प्रणाली को विकसित किया। इस प्रणाली कमजोर क्षेत्रों और संपत्ति को दुश्मन के विमान, ड्रोन और हेलीकॉप्टरों से बचाने के लिए है। यह एक साथ कई खतरों को रोक सकती है। इसका रीयल टाइम मल्टी-सेंसर डेटा प्रोसेसिंग और खतरा मूल्यांकन इसे एक बार में किसी भी दिशा से कई खतरों को लक्षित करने में सक्षम बनाता है। आकाश मिसाइल प्रणाली 4.5 किमी से 25 किमी की सीमा पर संचालित होती है और यह एक मध्यम-श्रेणी की सतह-से-हवा में मार करने वाली प्रणाली है। जो हवाई खतरों से बलों की रक्षा के लिए डिजाइन की गई है। यह ट्रैकिंग मोड में 64 लक्ष्यों और साथ ही साथ सक्रिय मोड में 12 लक्ष्यों का पता लगा सकती है। इसकी ओपन सिस्टम आर्किटेक्चर वर्तमान और भविष्य के वायु रक्षा नेटवर्क में एकीकरण की अनुमति देती है। 2021 में भारत ने आकाश प्रणाली को कुछ देशों को निर्यात को मंजूरी दे दी। दक्षिण पूर्व एशिया, मध्य पूर्व और अफ्रीका के कई देशों ने कथित तौर पर रुचि व्यक्त की है। यह अपनी सिद्ध क्षमता के साथ संयुक्त सिस्टम की अपेक्षाकृत कम लागत, विश्वसनीय वायु रक्षा की तलाश करने वाले देशों के लिए एक आकर्षक विकल्प है। 2022 में आर्मेनिया ने 15 आकाश मिसाइल सिस्टम के लिए ऑर्डर दिया। जिसकी कीमत लगभग 6,000 करोड़ रुपये (लगभग 720 मिलियन डॉलर) थी। पहले बैच, जिसमें चार लांचर, तीन मिसाइलों और एक राजेंद्र फायर-कंट्रोल रडार शामिल थे को नवंबर 2024 में भेजा गया था। फिलीपींस, मिस्र, वियतनाम और ब्राजील ने इस प्रणाली में रुचि दिखाई है।
ब्रह्मोस मिसाइल—
भारतीय वायु सेना (IAF) ने 10 मई को ब्राह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइलों से पाकिस्तानी एयरबेस पर सटीक हमले किए थे। जिसके पाकिस्तान की जवाबी हमला करने की शक्ति खत्म हो गई और उसने संघर्ष विराम का रास्ता चुना। ब्रह्मोस मिसाइल भारत के सबसे उन्नत और सटीक-स्ट्राइक हथियारों में से एक है। DRDO और रूस के NPO Mashinostroyenia द्वारा संयुक्त रूप से विकसित ब्राह्मोस एक सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल है। अपनी गति, सटीकता और बहुमुखी विशेषता के कारण यह भारत की सैन्य क्षमता का एक प्रमुख घटक है। ब्रह्मोस में मच 2.8 से मच 3.0 की गति है जो ध्वनि की गति से लगभग तीन गुना है। यह उच्च गति दुश्मन की प्रतिक्रिया समय को काफी कम कर देती है और वायु रक्षा प्रणालियों के खिलाफ प्रवेश क्षमता को बढ़ाती है। यह एक मीटर की सटीकता के साथ एक लक्ष्य को हिट कर सकती है। ब्राह्मोस मिसाइलें भारत के रक्षा निर्यात की सबसे बड़ी शोपीस हैं। पिछले महीने ब्राह्मोस सिस्टम के दूसरे बैच को फिलीपींस में भेजा गया था। जिसने 2022 में ब्राह्मोस को खरीदने के लिए 375 मिलियन डॉलर के सौदे पर हस्ताक्षर किए थे। दुनिया के कई देश ब्रह्मोस मिसाइल में रुचि दिखा रहे हैं। DRDO चीफ समीर वी कामत ने हाल ही में मीडिया को बताया कि इंडोनेशिया ने रुचि दिखाई है। दक्षिण पूर्व एशिया के कुछ अन्य देशों ने भी ब्रह्मोस में रुचि दिखाई है। ऑपरेशन सिंदूर के बाद ब्रह्मोस के लिए और अधिक खरीदार आकर्षित हो सकते हैं।

नागास्त्र-1—
भारतीय सेना ने पिछले साल जून में देश की पहली स्वदेशी सुसाइड ड्रोन नागास्त्र-1 लोइटर मुनिशन को शामिल किया था। नागपुर स्थित सोलर इंडस्ट्रीज द्वारा विकसित नागास्त्र -1 एक मैन-पोर्टेबल हथियार ड्रोन सिस्टम है जिसे उच्च सटीकता के साथ दुश्मन के खतरों को बेअसर करने के लिए डिजाइन किया गया है। लोइटर मुनिशन या सुसाइड ड्रोन सिंगल-यूज वाले हथियार हैं जो अपने लक्ष्यों को भेदते हुए विस्फोट करते हैं। वे एक लक्ष्य से ऊपर चक्कर लगाने और हड़ताल करने के लिए सही क्षण की प्रतीक्षा करने में सक्षम हैं। वे आम तौर पर एक लक्ष्य क्षेत्र में दुर्घटनाग्रस्त होकर लक्ष्य पर हमला करते हैं।
ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत ने ड्रोन हमलों को रोकने के लिए नागास्त्र-1 उपयोग किया। यह ड्रोन सटीक स्ट्राइक के लिए जीपीएस का इस्तेमाल करता है।

एंटी-ड्रोन डी-4 प्रणाली—
रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) के पूर्व चेयरमैन जी सतीश रेड्डी ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि ऑपरेशन सिंदूर ने रक्षा प्रौद्योगिकियों में देश की बढ़ती आत्मनिर्भरता का प्रदर्शन किया। उन्होंने कहा इस युद्ध में कई स्वदेशी आधारित प्रौद्योगिकियों का उपयोग किया गया था और यह युद्ध एक आत्मनिर्भर-आधारित युद्ध था। एंटी-ड्रोन सिस्टम जो डीआरडीओ और उद्योग दोनों द्वारा विकसित किए गए थे बहुत सफलतापूर्वक उपयोग किए गए जो कि बड़ी संख्या में ड्रोन के रूप में उपयोग किए गए थे। उन्होंने कहा कि एंटी-ड्रोन डी-4 सिस्टम का जिक्र किया। इस स्वदेशी रूप से विकसित एंटी-ड्रोन प्रणाली ने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तानी सेना के तुर्की निर्मित ड्रोन के हमले को रोका। DRDO द्वारा विकसित और भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BEL) द्वारा निर्मित यह एक Drone Detect, Deter, Destroy (D4) सिस्टम है। यह फ्लाइंग ड्रोन (माइक्रो/छोटे यूएवी) के वास्तविक समय की खोज, पता लगाने, ट्रैकिंग और न्यूट्रलाइजेशन रने में सक्षम है। साथ ही ऑब्जेक्ट का विवरण प्रदान करता है। इसके जामिंग फंक्शनिंग में ड्रोन को गुमराह करने और रेडियो आवृत्ति को जाम करने के लिए जीपीएस स्पूफिंग शामिल है। यह लेजर-निर्देशित ऊर्जा हथियारों को भी फायर कर सकता है जो ड्रोन को नीचे लाने के लिए प्रमुख घटकों और प्रोजेक्टाइल को पिघलाता है।

स्काई-स्ट्राइकर ड्रोन—
स्काई-स्ट्राइकर एक और loitering monition या Suidem Drone है जो भारत में इजराइल की साझेदारी के साथ विकसित किया गया है। ओपर्सेशन इनडोर में उपयोग किए जाने वाले स्काई स्ट्राइकर ड्रोन का निर्माण बेंगलुरु में एक औद्योगिक कंपनी में किया गया था। बेंगलुरु की अल्फा डिजाइन (अडानी समूह के स्वामित्व) और इजराइल के एल्बिट सुरक्षा प्रणालियों के बीच एक संयुक्त उद्यम के तहत इसका उत्पादन किया गया। SkyStriker लंबी दूरी की सटीक स्ट्राइक कर सकता है। ड्रोन प्रत्यक्ष हवाई अग्नि मिशनों का समर्थन करता है और जमीनी बलों के लिए परिचालन जागरूकता को बढ़ाता है। एल्बिट के मुताबिक यह ड्रोन यूएएस (मानव रहित विमान प्रणाली) की तरह उड़ता है और मिसाइल की तरह हमला करता है। कंपनी कहती है। एक मूक अदृश्य और आश्चर्यजनक हमलावर के रूप में Skystriker आधुनिक युद्ध के मैदान में काफी मददगार है।

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