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अब राज्यसभा में केजरीवाल

नई दिल्ली।। सियासी उड़ान में भी अनगिनत ख्वाहिशें होती हैं। एक सपना टूटा तो दूसरे ड्रीम का ताना-बाना तैयार हो जाता है। आप के राष्ट्रीय कन्वीनर अरविंद केजरीवाल दिल्ली चुनाव में परास्त होने के बाद अब पंजाब से राज्यसभा पहुंचेंगे। इसके लिए शतरंज की गोटियां बिछने लगी हैं। आप के राज्यसभा मेंबर एवम पंजाब के उद्योगपति संजीव अरोड़ा को पार्टी ने पंजाब विधानसभा की रिक्त लुधियाना वेस्ट सीट से लड़ाने का अहम फैसला लिया है। इस आशय का ऐलान भी आप की ओर से 26 फरवरी को कर दिया गया है। हालांकि अरोड़ा का राज्यसभा में कार्यकाल 2028 तक है। स्वाभाविक है, अरोड़ा के इस्तीफे से यह सीट खाली हो जाएगी। आप की रणनीति है, वह अपने सीनियर लीडर केजरीवाल की बड़ी आसानी से राज्यसभा में ताजपोशी करा देगी। इससे साफ है, अरविंद केजरीवाल अब केंद्र की पॉलिटिक्स करेंगे। उल्लेखनीय है, विधायक गुरप्रीत सिंह गोगी के निधन के बाद लुधियाना वेस्ट सीट पर उपचुनाव होना है। गोगी का 11 जनवरी, 2025 को अपने घर पर रिवॉल्वर साफ करते हुए गोली लगने से देहावसान हो गया था। हालांकि अभी चुनाव आयोग की तरफ से उपचुनाव की तारीख का ऐलान नहीं किया गया है। कयास लगाए जा रहे हैं, बिहार विधानसभा चुनाव के साथ यहां भी वोटिंग हो सकती है। बिहार में नवंबर में इलेक्शन ड्यू है। यूं तो केजरीवाल ने 2014 में भी लोकसभा में दस्तक देने का ख्वाब संजोया था। उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के सबसे कद्दावर नेता एवम पीएम पद के घोषित प्रत्याशी श्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ वाराणसी में ताल ठोकी थी। हालांकि लोकसभा के इस आम चुनाव का नतीजा श्री अरविंद केजरीवाल समेत अमूमन सभी सियासीदां पहले से ही जानते थे। राजनीतिक पंडितों ने जैसा सोचा था, वाराणसी का परिणाम वैसा ही आया। केजरीवाल 3.71 लाख मतों के अंतर से हार गए, बाकी कांग्रेस और बसपा उम्मीदवारों की तो जमानत जब्त हो गई थी। केंद्र शासित दिल्ली में केजरीवाल की 10 बरस की सरकार को सत्ता का नशा, मंत्रिमंडल का कदाचार, बड़बोलापन, अपरिपक्व सियासत, सरकारी आवास को शीशमहल बनाने के संग-संग अंततः नई शराब नीति ले डूबी। आप के तीन बड़े चेहरों- खुद अरविंद केजरीवाल के अलावा मनीष सिसोदिया और सतेंद्र जैन की नाव चुनावी सुनामी में डूबने के बाद पार्टी कोमा से बाहर निकलने को छटपटा रही है। वैसे तो पंजाब में सत्तारुढ़ होने के बाद आप को नेशनल पार्टी का दर्जा मिल गया है, लेकिन दिल्ली में सत्ता से बेदखली के बाद केवल पंजाब पर ही पार्टी की नैया पार कराने की आस टिकी है। फिलहाल दिल्ली आतिशी मालेर्ना के हवाले है। वह लीडर ऑफ ऑपोजिशन हैं। पंजाब की बागडोर भगवंत मान संभाले हुए हैं। जंगपुरा से हार के बाद सिसोदिया पर पंजाब सरकार के सुपरविजन का जिम्मा है। भविष्य में पंजाब की राजनीति भी किस करवट बैठेगी, कुछ भी नहीं कहा जा सकता है। इससे पूर्व यह दायित्व राघव चड्डा निभा रहे थे। चड्डा के राज्यसभा में जाने के बाद पंजाब का यह उत्तरदायित्व खाली चल रहा है। भविष्य में पंजाब की राजनीति भी किस करवट बैठेगी, कुछ भी नहीं कहा जा सकता है। फिलहाल तो पार्टी के आला लीडर्स ने यह कहकर सबके मुंह बंद कर दिए हैं, सिसोदिया और पंजाब के सीएम के बीच जबर्दस्त बॉन्डिंग है। पंजाब में बंपर जीत के बाद अप्रैल, 2022 में आप के पांच उम्मीदवार राज्यसभा के लिए चुने गए थे। इनमें एलपीयू के चांसलर श्री अशोक कुमार मित्तल, दिग्गज उद्योगपति संजीव अरोड़ा, प्रख्यात क्रिकेटर हरभजन सिंह, सीए राघव चड्डा, देश-विदेश में शिक्षाविद रहे डॉ. संदीप पाठक शामिल हैं। इन सभी का कार्यकाल 2028 तक है। सूत्र यह बताते हैं, इनमें से पार्टी के लिए सॉफ्ट टारगेट संजीव अरोड़ा रहे हैं। पंजाब के सियासी गलियारों में यह भी चर्चा आम है, संजीव अरोड़ा बाई इलेक्शन जीतते हैं तो उन्हें बतौर उपहार कैबिनेट मंत्री का पद मिलेगा, लेकिन देश- विदेश तक फैले कारोबार में अति व्यस्त अरोड़ा को यह नजराना सहज स्वीकार होगा, फौरीतौर पर यकीन नहीं होता है। दूसरी ओर अपने पति के इंतकाल के बाद गुरप्रीत सिंह गोगी की पत्नी सुखचैन गोगी चुनाव लड़ने का स्वप्न देख रही हैं। यदि उन्होंने बागी तेवर अपनाए तो क्या होगा ? उल्लेखनीय है, संजीव अरोड़ा से पूर्व आप अपनी राज्यसभा मेंबर एवम दिल्ली महिला आयोग की चेयरपर्सन स्वाति मालीवाल से भी इस्तीफा चाहती थी, लेकिन पार्टी साम, दाम, दंड, भेद की नीति के बावजूद विफल रही थी, बल्कि केजरीवाल के पीए विभव कुमार पर दबंगई के आरोप लगे थे। आरोपी को जेल तक जाना पड़ा था। यह बात दीगर है, केजरीवाल के खासमखास समझे जाने वाले विभव कुमार अब पंजाब सरकार के लिए काम कर रहे हैं। सियासत हो या उद्योग या कोई भी दीगर फील्ड, हर सेक्टर में अंततः चाह तो ऊंची उड़ान की ही होती है। यदि केजरीवाल खुद या उनकी पार्टी अपर हाऊस में भेजना चाहती है, तो किसी को ऐतराज नहीं होना चाहिए। अरविंद केजरीवाल की अब दिल्ली या पंजाब से एमएलए बनने की कोई ख्वाहिश नहीं रखते हैं और न ही आप की केंद्रीय काउंसिल चाहती है। केजरीवाल की पार्टी के आला नेता भी उन्हें राष्ट्रीय राजनीति में देखना चाहते हैं। दूसरी ओर विपक्षी दल मौजूदा समय में बिखरे-बिखरे से नजर आ रहे हैं। इसी टूट का लाभउठाकर एनडीए ने हरियाणा से लेकर दिल्ली तक अपनी सरकार बना ली हैं। यह बात दीगर है, एनडीए ने हरियाणा में तीसरी बार सत्ता में वापसी की है, तो हाल ही में दिल्ली में भाजपा ने ढाई दशक बाद अपनी सरकार बनाने में कामयाब रही है। 2025 के अंत में बिहार की 243 सीटों पर चुनाव प्रस्तावित हैं, जबकि 26 के मिड में वेस्ट बंगाल, केरल, तमिलनाडु, असम में चुनाव होंगे, लेकिन इंडिया गठबंधन को एक नेशनल कन्वीनर की दरकार है। इंडी गठबंधन को आतुर बिहार के सीएम नीतीश कुमार तो चुनाव से पूर्व ही विपक्ष को झटका देकर फिर से भाजपा की शरण में चले गए थे। वेस्ट बंगाल की सीएम ममता बनर्जी इंडी में शामिल ही नहीं हुई थीं। दिल्ली में कांग्रेस का तीसरी बार सूपड़ा साफ होने पर इंडी दलों को एनर्जेटिक नेशनल कन्वीनर की दरकार है। हालांकि बंगाल की शेरनी कहे जाने वाली ममता दीदी ने खुद यह ऐलान करके सबको चौंका दिया, वह इंडी गठबंधन की अगुवाई करने को तैयार हैं। ऐसे में यदि अरविंद केजरीवाल अपर हाऊस में पहुंचते हैं तो आप के संग-संग इंडी गठबंधन का भी भविष्य उज्जवल दिखाई देता है। यह बात दीगर है, आप के बड़े नेता इस नए सियासी समीकरण से इनकार कर रहे हैं, लेकिन आप के नेशनल कन्वीनर अरविंद केजरीवाल और उनकी सियासी फौज के पास कोई और बेहतर विकल्प दिखाई नहीं दे रहा है।

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