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काचन नदी पुनर्जीवन नेशनल वॉटर अवार्ड के लिए प्रस्तावित

पहल : मनरेगा परिषद ने काचन का गैबियन सह-स्टाप डैम कार्य फेसबुक पर किया शेयर, दो अन्य कार्य भी शामिल

ऑपरेशन टाईम्स सिंगरौली।। जिले में जल संरक्षण को लेकर हुए कार्य इस समय प्रदेश में चर्चा का केंद्र बने हुए हैं। रीवा संभाग के अधिकारियों के जिले में हुए विकास कार्य देखकर जाने के बाद मनरेगा परिषद भोपाल ने भी काचन नदी पुनर्जीवन कार्य को अपने फेसबुक पेज पर शेयर किया है। जिसमें अन्य जिलों को इसी तरह जल संरक्षण के कार्य चयनित करने के लिए प्रोत्साहित किया गया है। उधर कलेक्टर चंद्रशेखर शुक्ला ने तीन कार्यों को नेशनल अवार्ड के लिए चयनित करने के लिए प्रदेश व राज्य सरकार के पास प्रस्ताव भेजा है। जिसमें काचन नदी पुनर्जीवन सहित जल संरक्षण से जुड़े तीन अन्य कार्य शामिल हैं। काचन नदी पुनर्जीवन कार्य को प्रमुख सचिव से हरी झंडी मिलने की संभावना जताई जा रही है। जिला पंचायत सीईओ गजेंद्र सिंह नागेश की मानें तो जल सरंक्षण को लेकर विलुप्त होने की कगार पर पहुंची 8 नदियों को पुनर्जीवित करने का कार्य जिले में शुरू किया गया है। जिसमें सुखार, कोतरी, सेमरा, काचन, कंजास, धुत्रई, कुलकुड़वा व कारी नामक नदियां शामिल हैं। इसमें से काचन नदी को रिच-टू-वैली सिद्धांत पर पुनर्जीवित करने का कार्य किया गया है। जिसमें बगैर स्टील का प्रयोग किये 4 मीटर गहरा, 6 मीटर चौड़ा व 120 मीटर लंबा गैबियन सह स्टाप डैम का निर्माण किया गया है। 29 किलोमीटर के नदी क्षेत्र में दोनों तरफ पौधरोपण कर कटान रोकने के उपाय किये गये हैं। बारिश के पहले मनरेगा योजना के तहत 50 लाख रुपये की लागत से हुए इस कार्य का सकारात्मक परिणाम देखने को पहले साल ही मिला गया है। गैबियन सह स्टाप डैम के उस पार 120 मीटर चौड़ा व 550 मीटर लंबा 8 मीटर गहरा जलभराव हो चुका है।

किनारे के गांवों का बढ़ा जलस्तर—
29 किलोमीटर बहाव क्षेत्र वाले काचन नदी के किनारे पर स्थित गड़ेरिया, तेलदह, पोड़ी नौगई, देवरी, गड़हरा, चोकरा आदि गांवों का जलस्तर ऊपर आ गया है। जिसका फायदा किसानों को भी होने लगा है। नदी के दोनों किनारों पर किसानों की फसलें लहलहा रही हैं। वहीं मवेशियों का चारा व पानी भी सुलभ रूप से मिल जा रहा है।

काचन डैम बनने के बाद नदी पर आया संकट—
जिपं सीईओ गजेंद्र सिंह नागेश ने बताया कि फुलवारी टोला की पहाड़ी से निकली काचन नदी पर 1975 में डैम बनाया गया था। जिसके बाद से नदी का पानी निम्न स्तर पर चला गया था। नदी, नाले में तब्दील हो गयी थी। उसके बाद विलुप्त होने की स्थिति में पहुंच गई थी। जल संरक्षण अभियान के तहत नदी के अंदर उगी जंगली घास की सफाई कराई गई। फिर गाद को बाहर निकाला गया। दोनो किनारों पर कंटूर ट्रंच, लूज बोल्डर, गली प्लग का निर्माण कराया गया। किसानों से समन्वय स्थापित कर मेड़ बंधान किया गया। हजारों की संख्या में पौधरोपण किया गया।

उत्कृष्ण कार्य को अवार्ड दिलाने किया दावा—
सीईओ जिपं ने कहाकि वर्ष 2022-23 में जल संरक्षण के तहत सुखार व काचन नदी का पुनर्जीवन करने के अलावा कोतरी, सेमरा, कंजास, धुन्नई, कुलकुड़वा व कारी नदी को पुनर्जीवित करने के कार्य में तेजी लायी गयी है, इसलिए जल संरक्षण में नेशनल अवार्ड के लिए हम लोगों दावा पेश किया है। इसके लिए तीन कार्यों का प्रस्ताव मनरेगा परिषद में भेजा गया है। तीन कार्यों में काचन व कोतरी नदी पुनर्जीवन व जल संरक्षण के अन्य कार्य शामिल हैं। मनरेगा कमिश्नर ने भी अपनी फेसबुक पर यहां हुए कार्यों को शेयर कर अन्य जिलों को प्रोत्साहित किया है।

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