जज के घर में लगी आग की लपटों से न्यायपालिका झुलसी

नई दिल्ली।। दिल्ली हाईकोर्ट के जज यशवंत वर्मा के घर में तब आग लगी। जब वह छुट्टी लेकर होली मनाने मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल गए थे। दिल्ली स्थित निवास में होली के दिन उनके घर के स्टोर रूम पर आग लगी। यह घटना कई दिनों तक सामने नहीं आई। कई दिन बाद आग की घटना एक राष्ट्रीय समाचार पत्र के प्रथम पृष्ठ में प्रकाशित हुई। तब जाकर हंगामा मचा। आग तो बुझ गई थी लेकिन जज के घर की लगी आग की ठंडी राख में दबी चिंगारी से ऐसी लपटें उठीं। जिसकी चपेट में आकर पूरी न्यायपालिका ही धू-धू करके जलने लगी। जस्टिस यशवंत वर्मा का कहना है कि उनके खिलाफ साजिश रची गई है। जिस जगह आग लगी थी वह एक स्टोर रूम है। जो उनके निवास स्थान से काफी दूर है। इस स्टोर रूम के पास आउट हाउस बने हुए हैं। स्टोर में कबाड़ जैसा सामान रखा रहता था। वहां पर रोजाना बंगले में काम करने वाले लोग आते-जाते थे। जब वह लौट कर आए थे। तब वहां पर नोटों से संबंधित कोई निशान नहीं थे। ना ही उस समय उन्हें नोटों से संबंधित कोई बात बताई गई थी। जस्टिस यशवंत वर्मा इसे एक साजिश बता रहे हैं। मीडिया में जिस तरह से इस मामले का खुलासा हुआ है। न्यायमूर्ति वर्मा के गड़े मुर्दे जिस तरह से उखाड़कर मीडिया सामने लेकर आ रही है। जिस तरह से इस मामले को गोपनीय बनाकर रखा गया था। कई दिनों बाद फायर ब्रिगेड के अलग-अलग बयान आ रहे हैं। दिल्ली पुलिस ने मौन साध रखा है। सरकार ने भी पूरी तरह से चुप्पी साध रखी है। जस्टिस वर्मा के घर 15 करोड़ से लेकर 50 करोड रुपए तक की नगदी होने की बात मीडिया में प्रकाशित हो रही है। किसने नोट गिने, किसने नोट जप्त किये, दिल्ली पुलिस ने कब किसको सूचना दी। दिल्ली हाईकोर्ट ने कब सुप्रीम कोर्ट को सूचना दी। सुप्रीम कोर्ट को कब सूचना मिली। कब सुप्रीम कोर्ट ने कॉलेजियम की बैठक बुलाई। इन सभी मामलों में जिस तरह की चुप्पी सभी पक्षों ने साध रखी है। उससे न्यायपालिका की साख सड़कों पर तार-तार हो रही है। पिछले कुछ वर्षों से केंद्र सरकार द्वारा जिस तरह का दबाव न्यायाधीशों की नियुक्ति, ट्रांसफर-पोस्टिंग से लेकर कॉलेजियम बनाए जाने को लेकर रहा है। कॉलेजियम और सरकार के बीच में जिस तरह की तनातनी समय-समय पर देखने को मिली है। वर्तमान में सरकार का न्यायपालिका के ऊपर जिस तरह का दबाव है। वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण सुप्रीम कोर्ट और अन्य न्यायपालिका के जजों के ऊपर किस तरह से सरकार का दबाव है। इसको लेकर समय-समय पर आरोप-प्रत्यारोप का दौर देखने को मिला है। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई और पूर्व मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ के कार्यकाल में जिस तरह के फैसले बाबरी मस्जिद, पेगासस, चुनाव आयोग, दिल्ली सरकार, बोफोर्स हिंडनबर्ग और अन्य मामलों में सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के सामने आए हैं। उसको लेकर न्यायपालिका के कामकाज की समय-समय पर आलोचना होती रही है। हाल ही में न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा और पूर्व मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ के संबंध इलाहाबाद हाईकोर्ट से लेकर दिल्ली लाने के बीच में जोड़े जा रहे हैं। जिस शुगर फैक्ट्री में यशवंत वर्मा डायरेक्टर थे। सीबीआई की जांच चल रही थी। उस जांच को चंद्रचूड़ के आदेश से बंद किया गया था। यह सारे तथ्य न्यायपालिका की साख को तार-तार कर रहे हैं। इस मामले की जांच के लिये सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने तीन सदस्यों की एक आंतरिक जांच कमेटी बनाई है। जिसमें पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश शील नागू, हिमाचल के न्यायाधीश जीएस संधावालिया तथा कर्नाटक हाईकोर्ट के जज अनु शिवरामन की कमेटी को जांच करने की जिम्मेदारी दी हैं। दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने एक जांच रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंप दी है। इस मामले में दिल्ली पुलिस एवं केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की भूमिका को लेकर भी। मीडिया जगत में तरह-तरह की चर्चाएं चल रही हैं। मीडिया में जस्टिस लोया की मौत भी चर्चाओं में गई है। यह कहा जा रहा है कि सरकार न्यायपालिका के ताबूत में अंतिम कील ठोकना चाहती है। एक सुनियोजित साजिश के तहत जस्टिस वर्मा का मामला सामने लाया गया है। इस मामले के बाद सारे देश में भारतीय न्यायपालिका की विश्वसनीयता एक तरह से खत्म हो गई है। सरकार कॉलेजियम सिस्टम को खत्म कर न्यायाधीशों की नियुक्ति, ट्रांसफर, पोस्टिंग, पदोन्नति के सभी अधिकार अपने हाथ में लेना चाहती है। वर्तमान में न्यायपालिका बहुत कमजोर हो गई है। ऐसी स्थिति में सरकार जो चाहती है। वैसा करने में सक्षम हो गई है। चर्चाओं में यह भी कहा जा रहा है। दिल्ली पुलिस केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के अधीन है। सारे मामले में दिल्ली पुलिस और केंद्रीय गृह मंत्रालय की चुप्पी अपने आप बहुत कुछ कह रही है। इसको लेकर देश भर में जो प्रतिक्रिया हो रही है। वर्तमान स्थिति को देखते हुए यही कहा जा सकता है। न्यायपालिका अपने अस्तित्व की अंतिम लड़ाई लड़ रही है। जस्टिस यशवंत वर्मा पर जिस तरह के आरोप लगे हैं। उससे सरकार का पलड़ा भारी हो गया है। जांच रिपोर्ट और न्यायपालिका में फैले हुए भ्रष्टाचार को आधार बनाकर सरकार राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग बनाकर सारे अधिकार अपने हाथों में ले लेगी।।