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लोकतंत्र या अघोषित तानाशाही

ऑपरेशन टाईम्स सिंगरौली।। नेता भास्कर मिश्रा को उनके समर्थकों के साथ पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया। भास्कर मिश्रा सड़को पर हो रही दुर्घटनाओं को रोकने हेतु प्रशासन से व्यवस्था की मांग कर रहे थे। उनका पुलिस तथा जिला प्रशासन पर आरोप है कि वे जनता की आवाज दबाने का काम कर रहे हैं। लोकतंत्र में अहिंसक आन्दोलन करना, कुरीत्तियों के खिलाफ आवाज बुलन्द करना अपराध की श्रेणी में नहीं आता है।
विदित है कि सिंगरौली जिले में भारी वाहनों से प्रतिदिन सड़कों पर मौते हो रही हैं। मौतों के बाद घंटो चक्काजाम तथा मुआवजे की मांग की जाती है। सड़क पर हुई मौतों की क्षतिपूर्ति का सिलसिला प्रशासन की आदत में शुमार हो चला है। सड़क पर हिंसा न हो भास्कर मिश्रा इसी के खिलाफ आन्दोलन कर रहे थे। उन्हें उनके समर्थकों के साथ जेल में ठूस दिया गया।सिंगरौली जिले का मूल निवाली रहवासी एक दहशत में जिन्दीगी जी रहा है। कुरीतियों के खिलाफ मुखर विरोध होने पर पुलिस किसे कब उठा ले कहा नहीं जा सकता। अपने ही घर में हक हकूक की मांग करना अपराध की श्रेणी में आता जा रहा है। भास्कर मिश्रा का आन्दोलन किसी व्यक्ति विशेष की घटना नहीं है। यह जन भावना है जिसका आदर करना चाहिए। भास्कर ने कहा कि सड़क पर व्यवसायी अडानी का कोयला परिवहन किया जा रहा है उसके लिए वैकल्पिक सड़क का निर्माण हो तब तक मौतों के सिलसिले को रोकने के लिए कोयला परिवहन बन्द किया जाये। यदि जनता इसके विरोध में चक्का जाम करती है। तो वह लोकतांत्रित प्रक्रिया है। उसे रोकना दबाना तानाशाही कहा जा सकता है। अब यह सवाल की प्रशासन अडानी का पालतू है। इसका निहितार्थ तलाश करने की आवश्यकता है। जनता की बात न सुनना लोकतन्त्र में विचारों का दिवालियापन कहा जा सकता है। सिंगरौली में विस्थापन हो रहा है। पुनर्वास के सवाल पर भी मूल निवासियों की आवाज को दबाने की मुहिम प्रशासन चलाता रहता है। है। धूल, डीजल, कोयला, उड़नराख की मिलीजुली दुर्गन्ध के साथ सिंगरौली की हवा में एक आजीब सा तानाव पनपा है। लोग शौक, चिन्ता, अनिश्चितता के माहौल में एक खास बेचैनी की जिन्दगी जीने पर विवश हैं। हर तरफ कुछ खोने कुछ पाने की अजीब सी बेचैनी है। सरकार अपनी जनता को क्या, कैसे और क्यों नहीं दे पा रहा है? यह चिन्तन का विषय है। सिंगरौली की जनता विस्थापन के दबाव, प्रदूषण की के घेरे में एक अज्ञात भय के साथ जीवन व्यतीत कर रही है। यह जीना नहीं है। जानता के हृदय में जो ज्वालामुखी सुलग रहा है वह सरकारों तथा प्रशासन के लम्बे उपेक्षात्मक रवैये की देन है। ज्वालामुखी का यदि विस्फोट हुआ तो अलगाव, विखराव, संघर्ष को कोई रोक नहीं सकता।सरकार तथा प्रशासन के प्रति दबा आक्रोश सड़क दुर्घटनाओं के समय स्पष्ट देखा जाता है। सिंगरौली जिले में हर मुखर व्यक्ति पुलिस प्रशासन की निगरानी में है। जहां आवाज सुगबुगाती है। वहां माहौल बदल जाता है। मैं किसी भ्रम की बात नहीं कर रहा यह सिंगरौली की सच्चाई है। एक बुजुर्ग सिंगरौली वासी ने कहा कि सिंगरौलीवासी होना एक गुनाह जैसा हो गया है। एक युवक ने कहा कि यदि आप किसी उद्योगपत्ति की गतिविधियों की बात कर रहे हैं तो आप प्रशासन के संदिग्ध हैं। सिंगरौली वासियों में एक गुस्सा है। जो अभी तक बरपा नहीं है। बिहार, उत्तर प्रदेश तथा मप्र की सरहद पर बसे सिंगरौली में विकास के प्रति गहरी नाराजगी और अविश्वास विशेषण बनता जा रहा है। एक मूल निवासी ने कहा कि हम गिरिवासी हैं वनवासी हैं-हमारी पनोपज और हमारी नदियां, नालो, तालाब ही ठीक थे। दिन पर दिन सिंगरौली की हवा खराब होती जा रही है। उद्योगों के लिए जंगल काटे जा रहे हैं। हरियाली लुप्त होती जा रही है। विद्युत उद्योग, कोयला खदाने आती हैं तो हमें क्या? हमें अपना सिंगरौली चाहिए। सिंगरौलीवासियों की नाराजगी यदि सड़कों पर उतरने लगी है तो यह नाराजगी महज आर्थिक नहीं है। यह अपनी पहचान हक तथा असमानता का दर्द है। सिंगरौलीवासी कहता है कि सिंगरौली में संचालित उद्योगों में बाहरी लोग काम करते हैं। सिंगरौली की भागीदारी नगण्य है।।

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