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दर्दनाक मंजर : झाँसी मेडिकल कालेज में मासूम नवजात बच्चों की जलने से दर्दनाक मौतों का दोषी कौन


ऑपरेशन टाईम्स लखनऊ।। कैसी विडंबना है कि जीवनदान देने वाले अस्पताल अब शमशान घर बनते जा रहे हैं। झाँसी अस्पताल में नवजात बच्चों की अभी आखे भी नहीं खुली थी कि आगजनी ने ऊन बेकसूर बच्चों के प्राण ही हर लिए। ताज़ा घटनाक्रम में शुक्रवार रात को झाँसी मेडिकल कालेज में आग से 10 नवजात शिशुओं की दर्दनाक मौत हो गई। खिड़की तोड़कर 39 नवजात बच्चों को बचा लिया गया। आग लगने की जाँच की जा रही है। कुछ वर्ष पहले महाराष्ट के भंडारा जिला अस्पताल में आग लगने से 10 नवजात बच्चों की दर्दनाक मौत हो गई थी। सात बच्चों को सुरक्षित बचा लिया गया था। नवजात बच्चों की आयु एक महिने से तीन महिने के बीच थी। तीन नवजात शिशुओं की आग से जलने से मौत हो गई थी जबकि सात बच्चों की दम घुटने से मौत हो गई थी। यह हादसा रात को घटित हुआ था। चिर निद्रा में सोए नवजात सदा के लिए सो गए। ऐसे हादसों से आत्मा सिहर उठती है। मां-बाप अपने नवजात बच्चों को ढूंढ रहे थे। मगर सब खत्म हो चुका था। अग्निशमन के जवानों ने 7 नवजातों को बचा लिया था। अस्पताल में 17 नवजात थे। इस दर्दनाक मंजर से हर आंख नम है। पल भर में चीख पुकार मच गई। मासूम नवजात बच्चे चंद मिनटों में राख में तबदील हो गए।

लापरवाही बरतने वालों पर मुकदमा चलाया जाए—
जिनकी गलती से यह दर्दनाक घटना हुई है। सरकार ने मुआवजे की घोषणा कर दी है। सरकार ने जांच के आदेश दे दिए है। आग लगने के कारणों का पता नहीं चल पाया है। आग के कारण नवजात बच्चों की दर्दनाक मौते होना बहुत ही त्रासदी है। नवजात बच्चे असमय काल के गाल में समा गए। दुखद पहलू है कि जहां लोग जीवन बचाने के लिए जाते है। अगर वहां मौत नसीब हो तो यह वहुत ही खौफनाक त्रासदी है। लापरवाही बरतने वाले लोगों पर हत्या का केस दर्ज करना चाहिए। जिनकी वजह से 10 नवजातों की मौते हुई है और घरों में मातम छाया है। लापरवाही न बरती होती तो बच्चे असमय काल के गाल में नहीं समाते। नवजातों की मौत से हर भारतीय सदमें में है। समय समय पर देश में ऐसे दर्दनाक हादसे होते रहते है। मगर व्यवस्था में सुधार नहीं हो रहा है। बच्चो ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि उन्हे तडफ-तड़फ कर मरना होगा। ऐसी मौत नसीब होगी। यह हादसा लोगों को इतने जख्म दे गया कि जख्म तो भर जाएगें। मगर निशान अमिट रहेगें। घर के चिराग अस्त हो गए। नन्हे फूल खिलने से पहले ही मुरझा गए। प्रतिदिन देश के अस्पतालों में कोई न कोई हादसा होता रहता है। कभी आग से बच्चे झुलस जाते है। सरकारों को इन हादसों पर संज्ञान लेना होगा। दोषी लोगों पर कारवाई करनी चाहिए। ऐसी वारदातें लापरवाही की पराकाष्ठा है। ऐसे हादसों की जांच होनी चाहिए कि ऐसी लापरवाही के लिए कौन जिम्मेवार है। इसकी जबाबदेही होनी चाहिए तथा दोषीयों के खिलाफ अपराधिक व हत्या का मामला चलाना चाहिए। यह बहुत ही घोर लापरवाही है। असपताल प्रबंधन को इस हादसे से सबक लेना चाहिए ताकि आने वाले भविष्य को सुरक्षित किया जा सके और लोगों को अकाल मौत न मिल सके। लोगों ने सपने में भी नहीं सोचा था कि उनके नवजात बच्चों को ऐसी दर्दनाक मौत नसीब होगी। यह कोई नया हादसा नहीं है। देश में अस्पतालों में हर रोज कहीं न कहीं से ऐसे हादसे होतें रहते है। कुछ दिन व्यवस्था ठीक रहती है। फिर वही परिपाटी चल पडती है। सरकारें मुआवजा देकर अपना फर्ज निभाती है लेकिन मुआवजा इसका हल नहीं है। असमय मारे गए नवजातों के परिजन ताउम्र इसका दंश झेलेगें। देश के मसीहाओं को इन हादसों से कोई सरोकार नहीं होता। परिवार के लोग ही दंश झेलते हैं। माताओं की गोदें सूनी हो गई। देश के हर राज्य में भयानक हादसे हो रहे है। मगर राज्य सरकारें गहरी निंद्रा में सोई है। सरकार के रहनुमाओं को अपनी निन्द्रा तोड़ देनी चाहिए। सरकार को चाहिए कि हादसे के दोषियों को सजा दी जाए ताकि आने वाले दिनों में ऐसे हादसों पर पूर्ण रुप से रोक लग सके। अस्पतालों में व्यवस्था को सुधार करना होगा ताकि फिर कभी कोई नवजात बच्चे बेमौत न मारे जाए। अगर अब भी लापरवाही बरती तो निर्दोष बच्चों की मौते होती रहेगी। नवजात की दर्दनाक मौतों से प्रशासन को सबक लेना चाहिए तथा अस्पतालों की दशा सुधारनी चाहिए। वक्त अभी संभलने का है।।

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