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सरकार पलटी! अब नहीं होगा अस्पताल का निजीकरण

सरकार झुकती भी है घुटने पर रेंगती भी है, ज़ब जंग जायज और जनहित कि होती है

ऑपरेशन टाईम्स सीधी।। मध्यप्रदेश सरकार ने प्रदेश की 12 जिला अस्पतालों को निजी हाथों में सौंपने का फैसला करके टेंडर्स आहूत किया गया था। प्रदेश सरकार के घातक जन विरोधी निर्णय से गरीब, हरिजन, आदिवासी, पिछड़ा वर्ग के लोग समुचित इलाज से बंचित होते, वैसे भी सीधी जिला बहुतायत आदिवासी आवादी का जिला है साथ ही जिले की कुल आबादी में से ज्यादातर गरीब एवं मध्यम तपके के ही लोग है। प्रदेश सरकार ने इसी प्रकार से प्रदेश के 12 गरीब एवं पिछड़े जिलों कटनी, मुरैना, पन्ना, भिंड, अशोकनगर, गुना ,धार, सीधी, बेतुल, खरगोन, टिकमगढ़ और बालाघाट के जिला अस्पतालों को ठेकेदारी में देने का फैसला करके आम जन के साथ विश्वासघात का अपराध करनें जा रही थी। मध्यप्रदेश सरकार के जनविरोधी निर्णय की जानकारी होने पर सीधी जिले के कई सामाजिक संगठन, किसान संगठन एवं मजदूर संगठन ने मिलकर के “अस्पताल बचावा जीउ बचावा संघर्ष मोर्चा” का गठन करके अस्पताल को निजी हाथों में दिए जाने के सरकार के निर्णय का साझा विरोध करते हुए सत्याग्रह आंदोलन सुरु किया गया। सत्याग्रह आंदोलन सतत सीधी जिले में दो माह तक चलता रहा। सत्याग्रह आंदोलन में जिले के लोगों की प्रत्यक्ष भागीदारी रहती थी एवं जिले के समस्त नागरिकों की जन भावना आंदोलनकारियों के साथ थी। सत्याग्रह आंदोलन सीधी जिले के सभी सातों सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के समक्ष करने के वाद जिला मुख्यालय सीधी में सत्याग्रह आंदोलन करके राजयपाल महोदय के नाम ज्ञापन पत्र सौप कर मांग कि गईं कि प्रदेश सरकार को निर्देशित करे कि जिला सरकारी अस्पताल को निजी हाथों में देने के फैसले को वापस ले, क्योंकि ऐसा नहीं होने से आम आदमी महगे इलाज के चलते दम तोड़ने को मजबूर होगा। सत्याग्रह आंदोलन के दरमियान जिले के आदिवासियों एवं गरीवो ने मजबूत भागीदारी निभाई। जायज मांगो को लेकर के जज्बे के साथ लड़ी गई लड़ाई के चलते प्रदेश सरकार को घातक जन विरोधी निर्णय को वापस करना पड़ा। अस्पताल बचावा जिउ बचावा सत्याग्रह मोर्चा के सभी साथियों को बधाई। प्रदेश सरकार द्वारा जिला अस्पतालों को निजी हाथों में न देने के निर्णय की जानकारी होने पर आदिवासियों नें खुशी में गीत गाते हुए सैला नृत्य के साथ झूम उठे। इससे पता चलता है कि गरीब के लिए सरकारी अस्पताल कि क्या अहमियत है! सरकार को कहना चाहता हूँ कि जिला अस्पतालों पर सरकार ने अपना निर्णय बदलकर सराहनीय कार्य किया है परंतु 348 सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों, 161 सिविल अस्पताल और संजीवनी क्लीनिक की सेवाओं को आउटसोर्स करने के निर्णय पर अपनी स्थिति स्पष्ट करें । हमारी सरकार से मांग है इन स्वास्थ्य संस्थानों को भी सरकार द्वारा ही संचालित किया जाए और आउटसोर्स से सेवाएँ नहीं ली जाए। पूरे स्वास्थ्य तंत्र में निजी भागीदारी को पूरी तरह से बंद कर सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं और संस्थानों को मजबूत करे।

किसी सायर नें कहा है कि –

हिम्मत से हर जंग जीती जा सकती है।
बस कदम बढ़ाओ तो सही…
माना राह में रोड़े होंगे, ठोकरें लगेंगी….
पर वो घाव सबक भी जरूर देगा
अभी से पाँव के छाले न देखो 
अभी यारो सफ़र की इब्तिदा(आरम्भ)है।

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