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नीतीश कुमार के दांव से बदली बिहार की सियासी चाल, लोकसभा चुनाव में चला JDU का जादू

ऑपरेशन टाईम्स संपादकीय।। बिहार के लोग अब नए साल के स्वागत की तैयारी में जुट गए हैं। अगले साल राज्य में विधानसभा चुनाव होने वाला है। इसके पहले गुजरने वाले साल की भी समीक्षा होने लगी है। गौर से देखें तो चुनाव से पहले के इस साल को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सियासी चाल और राजनीति में हुए नए लोगों के आगाज के लिए याद किया जाएगा। जिसने बिहार की सियासी चाल बदल दी।

नीतीश कुमार के दांव से बदली बिहार की सियासी चाल—
दरअसल इस साल की शुरुआत में ही बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का समर्थन करते नजर आए। जनवरी में सियासी चाल चलते हुए वह 17 महीने चली महागठबंधन की सरकार से बाहर हो गए और एनडीए में चले आए। इसके बाद उन्होंने भाजपा के सहयोग से सरकार बनाने का दावा पेश किया और 28 जनवरी को नौवीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली।

साल भर अपने बयानों से चर्चा में रहे CM नीतीश—
गौर करने वाली बात यह है कि इस साल के पहले महीने से लेकर अंतिम महीने तक विभिन्न सार्वजनिक मंचों से नीतीश कुमार दोहराते भी रहे हैं कि पहले गलती हो गई थी लेकिन अब वह कभी इधर-उधर नहीं जाएंगे। हालांकि समय-समय पर उनके फिर से महागठबंधन में शामिल होने के कयास लगते रहे हैं और खूब चर्चा भी होती रही।

लोकसभा चुनाव में चला JDU का जादू—
बहरहाल इस साल के लोकसभा चुनाव में भले ही बीजेपी को पूर्ण बहुमत न मिला हो लेकिन बिहार में सीएम नीतीश कुमार की JDU का जादू चला। पार्टी गठबंधन में 16 सीटों पर चुनाव लड़ी और 12 सीटों पर सफल रही। पार्टी का स्ट्राइक रेट करीब 80 प्रतिशत रहा और वह बीजेपी की सबसे बड़ी सहयोगियों में से एक बनी। जिसका असर साफ तौर पर दिखा और मोदी सरकार ने जब बजट पेश किया तो बिहार के लिए खजाना खोल दिया। अक्टूबर के महीने में प्रधानमंत्री मोदी ने बिहार के दूसरे एम्स का शिलान्यास करने के साथ ही कई तरह की परियोजनाओं के लिए फंड भी जारी किया।

इन युवा नेताओं ने की राजनीति में एंट्री—
इस साल हुए लोकसभा चुनाव में भोजपुरी अभिनेता पवन सिंह, राजद अध्यक्ष लालू यादव की पुत्री रोहिणी आचार्य और बिहार के मंत्री अशोक चौधरी की पुत्री शांभवी चौधरी ने भी बिहार की सियासत में एंट्री किए। रोहिणी आचार्य ने सारण और सिंह ने काराकाट से चुनावी मैदान में उतरकर खलबली मचा दी। ये दोनों चुनाव नहीं जीत सके लेकिन काराकाट में पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेन्द्र कुशवाहा को भी हार का मुंह देखना पड़ा। हालांकि शांभवी चौधरी समस्तीपुर से सांसद बन गईं।

लोजपा (रामविलास) ने जीती सभी सीटें—
यही नहीं इस लोकसभा चुनाव में एनडीए में लोजपा रामविलास को पांच सीटें दी गई थीं लेकिन उनके चाचा और पूर्व केंद्रीय मंत्री पशुपति पारस की पार्टी राष्ट्रीय लोजपा को एक भी सीट नही मिली। लोजपा रामविलास ने मौके का लाभ उठाते हुए सभी पांच सीटों पर जीत का परचम लहराया।

दो राजनीतिक पार्टियों की हुई राजनीति—
इस साल को बिहार में चर्चित चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर की पार्टी जन सुराज और पूर्व केंद्रीय मंत्री आर.सी.पी. सिंह की पार्टी आप सब की आवाज के सियासी आगाज के लिए भी याद किया जाएगा। दोनों मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के कभी नजदीकी रहे थे और अब राजनीति की पिच पर उन्हें चुनौती देंगे।

राजनीतिक यात्राओं का गवाह बना साल—
इस साल कई सियासी यात्राएं भी शुरू हुई हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव समेत कई नेता इस साल यात्रा पर निकले। बहरहाल इस गुजरे वर्ष में बिहार की सियासत में कई उतार-चढ़ाव देखने को मिले हैं। अब देखने वाली बात होगी कि आने वाले चुनावी साल में प्रदेश की सियासत कैसा रंग दिखाती है।

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