उज्जैन का सिंहस्थ अलौकिक होगा : मुख्यमंत्री डॉ. यादव

ऑपरेशन टाईम्स भोपाल।। मोक्षदायिनी उज्जयिनी का सिंहस्थ महापर्व से अत्यन्त घनिष्ठ संबंध है और उज्जयिनी के कुम्भ पर्व का अन्य पर्वों से भी अधिक महत्व का स्थान प्राप्त है क्योंकि इसमें सिंहस्थ महापर्व भी समाहित है। हरिद्वार, प्रयाग, नासिक, उज्जैन के कुम्भों में सिंहस्थ इसलिए अलौकिक है क्योंकि यह अमृत जल का मूल स्थान है। अमृतमंथन के बाद अमृत वितरण अवन्ती के महाकाल वन में ही हुआ, इसीलिए उज्जैन का नाम अमरावती हुआ और यहाँ अमृतपान कर देवता अमर हुए। समुद्रमंथन के बाद देवासुर संग्राम की शान्ति ऋषि नारद के हस्तक्षेप से यहीं संभव हुई। यह बात मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने विक्रमोत्सव 2025 के शुभारंभ अवसर पर सिंहस्थ 2028 की अवधारणा को लोकार्पित करते हुए कही। मुख्यमंत्री ने कहा कि उज्जैन में ही भगवान विष्णु ने मोहिनी अवतार वैशाख शुक्ल एकादशी को धारण किया और महामोहिनी ने अमृत वितरण किया। इसलिए यह अमृत भूमि है क्योंकि यहाँ अमृतपान हुआ। उज्जैन में ही श्रीविष्णु के चक्र से राहु को विभक्त कर राहु-केतु का विभाजन हुआ और तभी से उनकी नव ग्रहों में गणना की जाने लगी। समुद्रमंथन से प्रकट हुई महालक्ष्मी उज्जैन के महाकाल वन में रहने लगीं तदन्तर समुद्रमंथन से उत्पैन्नव कौस्तुभ मणि, पारिजात वृक्ष, वारुणी मदिरा, धन्वन्तरि, चन्द्रमा, कामधेनु, ऐरावत हाथी, उच्चैःश्रवा अश्व, अमृत कलश, अप्सरा रम्भा, शारंग धनुष, पाञ्चजन्य शंख, महापद्म निधि, कालकूट विष ये चौदह रत्न उत्पन्न हुए। इन सबको लेकर देवता और दैत्य महाकाल वन आये। यहीं महाकाल वन में देवताओं को रत्नों की भेंट मिली, जिसके कारण वे रत्नभोगी कहलाये। मुख्यमंत्री ने बताया कि महामोहिनी ने कौस्तुभ मणि, लक्ष्मी, शारंग धनुष व पाञ्चजन्य शंख भगवान विष्णु को अर्पित किये। उच्चैःश्रवा अश्व सूर्य को तथा गज श्रेष्ठ ऐरावत इंद्र को समर्पित किया। देवताओं को अमृत और शिवजी को चन्द्रमा अर्पित हुए। वृक्षों में श्रेष्ठ पारिजात तथा अप्सरा रम्भा को इंद्र के क्रीड़ा कानन नंदनवन में भेजा गया। देवताओं को इस कारण अपना खोया हुआ स्थान पुनः प्राप्त हुआ। कामधेनु को यज्ञ सिद्धि के लिए ऋषियों के आधीन किया गया। महापद्म नाम की निधि कुबेर के भवन में गई और कालकूट विष को महादेव ने धारण किया तथा नीलकंठ कहलाये। जहाँ रत्नों का बँटवारा हुआ उस रत्न कुंड में स्नान करके जो भगवान नीलकंठ का दर्शन करता है वह सभी पापों से मुक्त होकर सब रत्नों का भोगी होता है और अंत में शिवलोक को जाता है। चूँकि अवंतिकापुरी में आकर सभी देवता रत्नों के भोगी हुए तथा भगवती पद्मा (महालक्ष्मी) निश्चल रूप से यहाँ निवास करती हैं इसलिए ब्रह्मा और विष्णु आदि देवगणों ने उज्जैन का नाम पद्मावती रखा और आशीर्वाद दिया कि जो मानव इस तीर्थ में स्नान, दान, पूजन और तर्पण करेगा उसके शरीर में किंचित भी पाप नहीं रह जाएगा। उसे दरिद्रता और दुर्गति प्राप्त नहीं होंगे। डॉ. यादव ने बताया कि सिंहस्थ महापर्व के आयोजन की जानकारी महाभारत काल के पूर्व से मिलती है। महर्षि सान्दीपनि काशी से सिंहस्थ महापर्व के अवसर पर अवन्ती आये। तत्समय भीषण अनावृष्टि के कारण श्रद्धालु परेशान थे और सिंहस्थ भी बाधित हो रहा था। महर्षि सान्दीपनि ने सिंहस्थ की बाधाओं को हरने और श्रद्धालुजनों के कष्टों के निवारण के लिए महाकाल की घोर तपस्या की। देवी पार्वती के अनुरोध पर महादेव महाकाल लिंग से प्रकट हुए और महर्षि सान्दीपनि को दुर्भिक्ष दूर करने और जनता को सुखी करने का वरदान दिया कि अब इस अवन्तिका के दुर्भिक्ष का कष्ट कभी नहीं रहेगा तथा यह देश मालव के नाम से प्रसिद्ध होगा। साथ ही उन्होंने महर्षि सान्दीपनि को निर्देश दिये कि अब आप भी मेरी अर्चना करते हुए यहाँ बस जाये और विद्यादान द्वारा भावी पीढ़ी को ज्ञान-विज्ञान की शिक्षा देकर विश्व कल्याण के लिए अग्रसर बनाये। निकट भविष्य में आपके सुयोग्य शिष्य श्रीकृष्ण और बलराम आपके मृत पुत्र को यम से लाकर सौंप देंगे। लोक आख्यान अनुसार तभी से महर्षि सान्दीपनि के प्रयास से मालवा में सुभिक्ष हो गया और यहाँ के निवासी वैभवशाली हो गये। इसीलिए मान्यता है कि सर्वे देशा भूषिता मालवीयैस्स्र्वे विज्ञा भूषिता मालवीयै। सर्वे धर्मा आश्रिता मालवीयै: सर्वा विद्या आश्रिता मालवीयै।। इस प्रकार उज्जैन में सिंहस्थ के आयोजन की जानकारी कोई सवा पाँच हजार वर्ष पूर्व होने की हमें मिलती है और उसके बाद समय-समय पर सिंहस्थ महापर्व उज्जैन में एक निरन्तर बना हुआ है। मणिपुरचक्र उज्जयिनी का प्रागैतिहासिक, वैदिक, पौराणिक, रामायण कालीन, महाभारत कालीन, जैन, बौद्ध, मौर्य, शुंग, शकों, हूणों, यवनों, आभीरों, गुप्तों, मौखरियों, सातवाहनों, गुर्जरों, प्रतिहारों, परमारों, खिलजियों, मुगलों, मरहट्ठों के दुरंत दौरों, फिरंगियों का दौर रहा हो लेकिन सिंहस्थ के माध्यम से धर्म, दर्शन, इतिहास संहिता, कला, वेद, वेदांग, योग, आयुर्वेद, ज्योतिष, खगोल विज्ञान का उन्मेष यहाँ सदैव ही रहा है। मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा कि वर्ष 2028 में उज्जैन में आयोजित होने वाले अलौकिक सिंहस्थ के माध्यम से हमारा प्रयास होगा कि समस्त तीर्थों के भ्रमण की परंपराओं, अनन्त साधनाओं, अखंड साधना पीठों के माध्यम से लोक कल्याण का एक नैष्ठिक निःसंग प्रयास किया जा सके।