मंत्री विजय शाह की अभद्र टिप्पणी पर दर्ज हुए केस को हाईकोर्ट ने बताया खानापूर्ति, फिर से FIR कराने के आदेश

ऑपरेशन टाईम्स जबलपुर।। मंत्री विजय शाह के बेशर्मी भरे बयान हाईकोर्ट ने इस बार सरकार को फटकार लगाई है। एफआइआर को खानापूर्ति बताते हुए नाराजगी जताई है। साथ ही मंत्री के खिलाफ दोबारा से एफआइआर दर्ज करने के आदेश दिए हैं। मध्यप्रदेश के जनजातीय कार्य मंत्री विजय शाह द्वारा कर्नल सोफिया कुरैशी को लेकर दिए विवादित बयान पर जबलपुर स्थित एमपी हाईकोर्ट ने एक बार फिर फटकार लगाई है। कोर्ट ने मंत्री शाह के खिलाफ देर रात में दर्ज हुई एफआइआर को खानापूर्ति बताया है। कोर्ट ने कहा कि इस तरह की एफआईआर से तो आरोपी को ही लाभ मिलता दिख रहा है। कोर्ट ने नाराजगी जताते हुए मंत्री शाह के खिलाफ दोबारा एफआइआर दर्ज करने आदेश दिए हैं।
मंत्री विजय शाह पर शाम 6 बजे तक गंभीर आपराधिक धाराओं में दर्ज करें मामला- हाईकोर्ट—
महाधिवक्ता द्वारा दी गई जांच की दलील पर भी न्यायधीश ने नाराजगी जताई। उन्होंने कहा कि ये कोई हत्या का मामला नहीं है। सार्वजनिक भाषण की जांच में कितना समय लगेगा। कोर्ट ने ये स्पष्ट कर दिया कि वो इस पूरे की मॉनिटरिंग करेगा। हाईकोर्ट के इस फैसले से सरकार के हाथ-पांव भी फूल गए हैं।
केस को गंभीरता से ले सरकार- हाईकोर्ट—
आपको बता दें कि कर्नल सोफिया के खिलाफ की गई आपत्तिजनक टिप्पणी को लेकर हाईकोर्ट के आदेश के बाद इंदौर ग्रामीण के मानपुर थाने में प्राथमिकी (FIR) दर्ज की गई थी। लेकिन जिस ढंग से एफआईआर दर्ज हुई है। उस पर मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने असहमति जताई है। साथ ही सख्त रुख अपनाते हुए सरकार को भी फटकार लगाई है। कोर्ट के अनुसार जिस तरह एफआईआर को ड्राफ्ट किया गया है। मानों आरोपी को ही लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से ऐसी लिखी गई है। कोर्ट ने कहा कि इससे स्पष्ट होता है कि सरकार इस मामले को गंभीरता से लेने में विफल रही है।
FIR में अपराध का उल्लेख ही नहीं- हाईकोर्ट—
हाईकोर्ट की एकल पीठ ने इस बात पर खास जोर दिया कि दर्ज की गई एफआईआर में न तो घटना का तथ्यात्मक वर्णन है और न ही ये बताया गया है कि किस कृत्य के कारण किन धाराओं के तहत केस दर्ज किया गया है। कोर्ट ने ये भी कहा कि FIR के पैरा 12 में सिर्फ हाईकोर्ट के आदेश को हूबहू कॉपी-पेस्ट किया गया है। जबकि कानूनी प्रक्रिया की दृष्टि से जरूरी था कि वहां उस कथन वीडियो क्लिप या सार्वजनिक बयान का उल्लेख किया जाता। जिस के चलते मामला दर्ज हुआ है।
हाईकोर्ट ने जताई गंभीर चिंता—
हाईकोर्ट ने सख्त लहजे में कहा कि, अगर सिर्फ आदेश ही लिखना था तो पूरी एफआईआर में ऊपर कुछ और लिखने की जरूरत ही क्या थी? पूरी एफआईआर सिर्फ आदेश की फोटोकॉपी बना दी जाती। कोर्ट ने चिंता व्यक्त करते हुए आपत्ति जताई कि एफआईआर इस तरह से तैयार की गई है कि मानो आरोपी को कानूनी राहत दिलाने के लिए ही ऐसा किया गया हो।
सरकार की निष्पक्षता और जांच की नीयत पर सवाल—
कोर्ट ने कहा कि अगर इस एफआईआर को सीआरपीसी की धारा 482 के अंतर्गत चुनौती दी जाए तो इसमें अपराध के तत्वों का अभाव के चलते इसे रद्द करना बेहद आसान होगा। कोर्ट ने ये संकेत भी दिए कि जानबूझकर अपराध के विवरण को नजरअंदाज किया गया ताकि बाद में आरोपी को कानूनी छूट मिल सके। ये एक गंभीर आरोप है जो सरकार की निष्पक्षता और जांच की नीयत पर प्रश्नचिह्न खड़े करता है।
FIR के समय पर भी असंतुष्ट दिखा HC—
FIR दर्ज किए जाने के समय को लेकर भी हाईकोर्ट ने सरकार की मंशा पर सवाल खड़े किए हैं। इस मामवे में राज्य सरकार ने दावा किया था कि शाम 7:55 बजे मामले में एफआईआर दर्ज की गई थी लेकिन रिकॉर्ड और अन्य दस्तावेजों पर गौर करें तो इसे फाइनल करने का समय रात 11 बजे दर्शाया गया है। कोर्ट ने सवाल किया कि जब वीडियो फुटेज जैसी ठोस सामग्री पहले से ही उपलब्ध है तो इतनी देर क्यों की गई? और जब इतना समय लिया ही गया तो उसमें अपराध का विश्लेषण क्यों नहीं जोड़ा गया ? कोर्ट का ये सवाल इस सवाल का मतलब इस ओर इशारा करना है कि ये पूरी प्रक्रिया सिर्फ औपचारिकता पूरी करने के लिए की गई है।
सबूतों पर भी कोर्ट नाराज—
जस्टिस श्रीधरन ने स्पष्ट करते हुए कहा कि ये कोई हत्या का जटिल मामला नहीं है। जिसमें गवाहों की तलाश करनी पड़े या परिस्थिति या साक्ष्यों की पड़ताल करनी पड़ी हो। मंत्री के बयान का एक वीडियो काफी है। जो पहले से ही सार्वजनिक है। ये भी स्पष्ट है कि उसमें उन्होंने क्या कहा है। ऐसे में FIR में उस वीडियो की सामग्री, वक्तव्य और आपत्तिजनक हिस्सों को क्यों हाईलाइट नहीं किया गया? कोर्ट ने कहा जब एफआईआर की बुनियाद ही कमजोर रखी जाएगी तो भविष्य में ये पूरा मामला आरोपी के पक्ष में झुक जाएगा और न्याय की प्रक्रिया कमजोर होगी।
ड्राफ्टिंग में दो मुख्य मुद्दे—
एफआईआर की ड्राफ्टिंग में दो मुख्य मुद्दे थे। पहली बात ये थी कि ड्राफ्टिंग ऐसी हो कि हाईकोर्ट का आदेश पूरा हो जाए और डीजीपी पर भी कोई बात न आए। दूसरा ये कि एफआईआर में ऐसी कोई बात न जाए। जिससे बीजेपी को पार्टी स्तर पर कोई डैमेज हो। यही कारण है कि एफआईआर की ड्राफ्टिंग के दौरान मंत्री विजय शाह के बयान को लिखा ही नहीं गया और ना ही धाराओं को लेकर लिखा कि मंत्री के बोलने से देश की एकता, अखंडता पर खतरा आए और इन धाराओं का उल्लंघन किया। सिर्फ हाईकोर्ट के आदेश का बॉक्स ज्यों का त्यों एफआईआर में लिख दिया। बसा साथ में दो लाइनें जोड़ी गईं कि हाईकोर्ट के आदेश से इन धाराओं में केस दर्ज किया जाता है।
12 बजे से पहले FIR दर्ज के थे निर्देश—
पुलिस अधिकारियों को भोपाल से यहां तक आदेश आ गए थे कि रात 12 बजे से पहले केस होना है। इसके लिए तैयारी रखिएगा जैसे ही ड्राफ्ट आए तत्काल एफआईआर दर्ज की जाए। थाने को ये निर्देश तक मिले थे कि बिजली की व्यवस्था भी रखिएगा। बाद में यह मत कहना लाइट चली गई थी। इसके चलते थाने में अतिरिक्त जनरेटर बुलाकर भी रखा गया था ताकि पॉवर कट होने पर जनरेटर को बैकअप के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकेगा।
रात 11.27 बजे हुई FIR—
हाईकोर्ट ने शाम को इसमें एफआईआर के आदेश दिए थे लेकिन इसी ड्राफ्टिंग के चलते इसमें देरी हुई। रात करीब 11 बजे यह ड्राफ्टिंग पुलिस अधिकारियों को मिली। जिसे टाइप कर रात 11.27 बजे एफआईआर दर्ज कर दी गई। इसी दौरान रात 11.36 बजे सीएम डॉ. मोहन यादव के आफिस से ट्वीट हुआ कि माननीय मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के आदेश का पालन करते हुए माननीय मुख्यमंत्री जी ने कैबिनेट मंत्री विजय शाह के बयान के संदर्भ में कार्रवाई के निर्देश दिए हैं।।