
नई दिल्ली।। 22 जून को जब भारत में रात के लगभग 2-30 बजे थे, तब पश्चिम एशिया में एक नए युद्ध की आहट गूंज रही थी। अमेरिकी विमानों ने ईरान के तीन प्रमुख परमाणु ठिकानों- फोर्दो, नतांज और इस्फहान पर हमला किया। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने यह घोषणा की, अमेरिका ने एक सफल सैन्य कार्रवाई की है। अब शांति कायम करना ईरान के हाथ में है। सवाल यह है, क्या अमेरिका की यह कार्यवाही तीसरे विश्व युद्ध की दस्तक है, या शांति की नई शुरुआत के रूप में इसे देखा जा सकता है। इजराइल ने इस हमले को ऐतिहासिक और अमेरिका का निर्णायक कदम बताया है। ईरान ने इसे बर्बर हमला और अंतर्राष्ट्रीय कानूनों की अवहेलना बताते हुए इस हमले का विरोध किया है। संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने चेतावनी दी है, यह संकट नियंत्रण से बाहर जा सकता है। इसका असर पूरी दुनिया की स्थिरता पर पड़ेगा। एक तरह से उन्होंने भी तृतीय विश्व युद्ध की आशंका जाहिर की है। इस हमले ने विश्व मंच पर अमेरिका की भूमिका को फिर से कठघरे में लाकर खड़ा कर दिया है। अमेरिकी कांग्रेस में विरोध की आवाजें उठ रही हैं। यह कदम संवैधानिक अधिकारों के और अंतरराष्ट्रीय संधि कानून उल्लंघन के रूप में देखा जा रहा है। अमेरिका के भीतर भी इस कार्रवाई का विरोध हो रहा है, अंतरराष्ट्रीय समुदाय में चिंता है, अमेरिका की इस कार्रवाई से मिडिल ईस्ट में अस्थिरता एवं तनाव का जो तूफान उठा है इसका मुकाबला किस तरीके से किया जा सकता है। सबसे बड़ा सवाल यह है कि यह हमला ईरान को परमाणु हथियार बनाने से रोकने का रणनीतिक कदम है या एक और अनंत युद्ध के रूप में तीसरे युद्ध का आगाज है? ईरान ने दावा किया है, कि उसकी परमाणु गतिविधियां जारी रहेंगी। अमेरिकी हमले से ठिकानों को अधिक नुकसान नहीं पहुंचा है। इसका अर्थ यह ईरान का केवल एक ‘संदेश’ था या उसका शक्ति प्रदर्शन था। जिसमें अमेरिका के इस हमले से उसे कोई नुकसान नहीं हुआ है। इसका दूसरा पहलू है, वैश्विक राजनीति, शक्ति और व्यापार के रूप में, क्या रूस और चीन इस संघर्ष से दूर रहेंगे। वैश्विक समीकरण को ध्यान में रखते हुए ईरान की ओर से कूटनीतिक समर्थन को लेकर चीन और रूस आगे आएंगे? वर्तमान में इजरायल और ईरान के बीच जो युद्ध शुरू हुआ है। अमेरिका के युद्ध में कूद जाने के बाद यह युद्ध क्या दुनिया को दो ध्रुवों में बांटने की शुरुआत है। क्या अंतर्राष्ट्रीय व्यापार, विशेषकर तेल आपूर्ति, मुद्रा, एवं वैश्विक शक्ति पर संतुलन बनाए रखने की दिशा में इसका घातक प्रभाव क्या हो सकता है। इसको लेकर सभी देश आशंकित हैं। अमेरिका ने अनायास जो कदम उठाया है, उसने अमेरिका की छवि को खराब करने का काम किया है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 15 दिन के बाद निर्णय लेने की बात कही थी, लेकिन दो दिन बाद ही उन्होंने हमला कर दिया। इसके पहले भी 15 दिन बचने के 1 दिन पहले ही इसराइल ने ईरान के ऊपर हमला कर दिया था। अमेरिका का यह हमला एक नए संकट की शुरुआत है? युद्ध की लपटें अगर भड़कीं, तो न केवल मिडिल ईस्ट, बल्कि पूरी दुनिया के देश उसकी चपेट में आ सकते हैं। इस स्थिति में समाधान सैन्य तरीके से नहीं, वरन कूटनीतिक और बातचीत के जरिए ही संभव हो सकता है। यही वक्त है जब दुनिया के सभी देशों को दुनिया में शांति बनाए रखने के लिए आगे आना होगा। अमेरिका ने जो ईरान के ऊपर कारवाई की है, उसका विरोध भी देखने को मिल रहा है। इसराइल पिछले कई माह से गाजा और आस-पास के देशों में नरसंहार कर रहा था। वैश्विक संस्थाओं के निर्देशों का पालन नहीं कर रहा था। मानव अधिकार कानून को भी धता बता रहा था। अहंकार और आतंक के बल पर मिडिल ईस्ट के देशों के साथ तानाशाही कर रहा था। अमेरिका का उसे समर्थन मिल रहा था, जिसके कारण वह निरंकुश हो गया था। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के आने के बाद जिस तरह से अमेरिका ने इस मामले में चालबाजी के साथ ईरान के ऊपर हमला कर उसे नष्ट करने की चेष्टा की है। उससे अमेरिका और इजरायल की साख सारी दुनिया के देशों में घट रही है। ईरान के पक्ष में चीन और रूस के शामिल हो जाने के बाद इसके भयंकर परिणाम की आशंका से सारी दुनिया के देश आशंकित हो गए हैं।