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सड़क हादसों पर आखिर कब लगेगा लगाम

ऑपरेशन टाईम्स सिंगरौली।। सिंगरौली जिला तेजी से विकास की ओर अग्रसर है। विकास की जो रफ्तार देखी जा रही है उसी अनुपात में लोगों की जिंदगियां भी दाँव पर लग रही हैं। प्रशासन के पास इसका कोई स्थाई हल नहीं है। सड़क पर आये दिन मौत का तांडव जारी है। कहीं किसी की मांग उजड़ रही है तो कहीं पर कोई कोख खाली हो जा रही है। किसी की बहन चली जा रही है तो कहीं किसी का भाई नहीं रहा। ये सिलसिला सिंगरौली जिले की नीयत बन चुका है। जिले के शहरी इलाके से लेकर ग्रामीण अंचलों तक हर जगह भारी वाहनों का आवागमन हो रहा है। सरकार यह कहते हुये नहीं अघा रही है कि सिंगरौली सिंगापुर बनने की ओर अग्रसर है। विकास के नाम पर कंकरीट के जंगल बनाये जा रहे हैं। सड़कों को फोर लेन बनाने की घोषणाएं हो रही हैं लेकिन प्रशासन के पास सही नीति, सही व्यवस्था न होने के कारण लोग सड़कों पर निर्दोष दम तोड़ रहे हैं। जून के दस दिनों के आंकड़े पर नजर डाली जाये तो मुड़वानी डैम के पास सड़क दुर्घटना में एक की मौत हुयी। कचनी में ट्रक ने एक युवक को कुचला, परसौना में एक दूध बेचने वाले ग्रामीण को कोयला वाहक डंपर न कुचला। इसी सप्ताह में मुड़वानी डैम के पास दो हाईवा बेतहासा पलटे, बरगवां में सड़क दुर्घटना में दो गंभीर रूप से घायल हो गये। अमिलिया में कोयला वाहक तेज रफ्तार डंपर पलटा, जियावन थाना क्षेत्र में मोटर सायकिलें टकराई जिसमें गंभीर रूप से लोग घायल हो हो गये। जियावन थाना क्षेत्र में ही रेत वाहक हाइवा ने एक गाय को मार गिराया। उक्त आंकड़ा तकरीबन सात दिनों का है। यदि पूरे महीने का औसत निकाला जाये तो ऐसा कोई दिन नहीं बीतता जिस दिन कोई न कोई सड़क हादसा न हो। सरकार को कर चाहिए इसलिए शराब की दुकानें बेतहाशा खोली गयीं। इतना ही नहीं सरकारी शराब दुकानों एवं पुलिस तथा आबकारी की मेहरबानी से कस्बों से लेकर गांव के परचून की दुकानों तक शराब पहुंचायी जा रही है। नशे की हालत में वाहन चलाने से भारी वाहन चलाने वाले ड्राइवरों तथा लाईट विहिकिल चलाने वाले लोग हादसों के शिकार हो रहे हैं। एक ही सड़क पर भारी वाहन तथा हल्के वाहनों की आवागमन से हादसों में बढ़ोत्तरी हुयी है। प्रशासन ने मृत तथा घायल लोगों के परिजनों को राहत देने की व्यवस्था की है। कोई स्थायी सटीक हल के अभाव में जिला प्रशासन ने 2020 में ट्रांसपोर्टरों से प्रति ट्रांसपोर्टर ढाई लाख रूपये सड़क सुरक्षा निधि में जमा करने की पेशकश की। ट्रांसपोर्टर इतनी बड़ी रकम के लिए नहीं माने तो प्रति वाहन प्रतिमाह पाँच सौ रूपया सड़क सुरक्षा निधि के नाम पर प्रशासन द्वारा तय हुआ। जबकि यह रकम 2018 में सौ रूपये थी। बताते हैं कि क्षेत्र में हजारों वाहन चल रहे हैं। यह पैसा रेड क्रास सोसायटी में जमा होने की बात एसडीएम द्वारा पता चली है। जब कोई हादसा होता है तो यदि कोयला वाहक ट्रक दोषी हुआ तो पीड़ित परिवार को पचास हजार रूपये राहत राशि दी जाती है। यदि अन्य वाहन से हादसा हुआ तो मात्र बीस हजार रूपये क्रिया कर्म के लिए दे दिया जाता है। यह राशि देकर प्रशासन अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त हो जाता है। ट्रांसपोर्टरों द्वारा कितनी राशि अब तक मिली है। उसका कहाँ-कहाँ क्या उपयोग हुआ है। यह बताने के लिए प्रशासन तैयार नहीं है।


सड़क दुर्घटनाओं के विरोध में ग्रामीण सड़क पर—
किसी जिले/शहर के विकास के लिए रोड मैप होता है। यहां उद्योग धड़ाधड़ बसाये जा रहे हैं। संचालित भी हो रहे हैं लेकिन रोडमैप पर काम नहीं हो रहा है। शहर के विकास के रफ्तार के साथ-साथ यदि व्यवस्था पर भी प्रशासन ध्यान देता तो सैकड़ो लोग मौत के गाल में नहीं समाते। विकास के सिक्के के दो पहलू होते हैं। एक में तो चांदनी रात होती है। दूसरे पहलू में समाज की ऐसी ही विकृतियां परिलक्षित होती हैं। सिक्के के दोनों पहलुओं को ध्यान में न रखकर विकास करने से जनता का कभी भी हित नहीं हो सकता।

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