MP हाइकोर्ट ने मौत की सजा को उम्रकैद में बदला, मासूम से दुष्कर्म के बाद काट दिया था सिर
हत्या के बहुचर्चित मामले में सत्र न्यायालय के फैसले को हाइकोर्ट जबलपुर ने उम्रकैद में बदला

ऑपरेशन टाईम्स जबलपुर।। मध्यप्रदेश के सागर बंडा निवासी आरोपित भाई रामप्रसाद अहिरवार को सत्र न्यायालय द्वारा सुनाई गई मृत्युदंड की सजा को हाइकोर्ट जबलपुर ने आजीवन कारावास में परिवर्तित कर दिया है। जबकि मामले में अन्य आरोपित मृतिका के चाचा बंशीलाल अहिरवार को संदेह का लाभ देते हुए दोषमुक्त कर दिया। हाईकोर्ट ने कहा न्यायोचित संतुलन बनाया जाना आवश्यक है। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट जबलपुर बेंच के न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल व न्यायमूर्ति देव नारायण मिश्रा की युगलपीठ ने सागर अंतर्गत बंडा में मासूम बहन से दुष्कर्म के बाद सिर काटकर जघन्य हत्या के बहुचर्चित मामले में सत्र न्यायालय के फैसले को पलट दिया है।
मामला दुर्लभतम मामलों की श्रेणी में नहीं आता है—
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में साफ किया कि यह मामला दुर्लभतम मामलों की श्रेणी में नहीं आता है। जहां अपीलकर्ता को केवल मृत्युदंड ही दिया जाना उचित है।
आरोपित ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया था—
ऐसा इसलिए भी क्योंकि घटना के बाद आरोपित ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया था। वह समाज के वंचित श्रमिक वर्ग से आता है। अतएव उसकी सामाजिक आर्थिक पृष्ठभूमि शिक्षा के स्तर को ध्यान में रखते हुए सजा बदली।
एक बेहतर नागरिक बनने के लिए अवसर मिले—
इस आधार पर हाईकोर्ट का सुविचारित मत है कि मृत्युदंड के स्थान पर पश्चाताप से ग्रस्त एक युवा को सुधार करने और एक बेहतर नागरिक बनने के लिए इसी जीवन में अवसर मिलना चाहिए।
वरिष्ठ अधिवक्ता ने पक्ष रखा—
इस मामले की सुनवाई के दौरान अपीलकर्ता सागर बंडा निवासी रामप्रसाद अहिरवार सहित अन्य की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मनीष दत्त व दिलीप सिंह परिहार ने पक्ष रखा।
पेशेवर हत्यारा नहीं, उसका पहला अपराध था—
अधिवक्ता ने दलील दी कि सत्र न्यायालय ने इस मामले को विरल से विरलतम श्रेणी में रखकर मृत्युदंड जैसा अपेक्षाकृत कठोर फैसला सुना दिया। बावजूद इसके कि अपीलकर्ता रामप्रसाद अहिरवार एक पेशेवर हत्यारा नहीं है। यह उसका पहला अपराध था।
मृतिका की वास्तविक आयु सिद्ध करने में भी विफल—
अभियोजन पक्ष मृतिका की वास्तविक आयु सिद्ध करने में भी विफल रहा है। आरोपित व्यक्ति समाज के वंचित वर्ग अनुसूचित जाति समुदाय से हैं। उसके माता-पिता मजदूर पृष्ठभूमि से आते हैं।
सामाजिक परिवेश के संदर्भ में देखा जाना चाहिए—
उनके लिए उपलब्ध शिक्षा और सामाजिक संपर्क का स्तर जातिगत गतिशीलता और हमारे समाज में मौजूद ग्रामीण शहरी विभाजन के सामाजिक परिवेश के संदर्भ में देखा जाना चाहिए। यद्यपि हत्या करना क्रूरता है लेकिन रामप्रसाद अहिरवार की आयु और उसके द्वारा अपराध स्वीकार करने को भी ध्यान में रखना चाहिए।
क्या था मामला—
नाबालिग 13 मार्च 2019 को घर से स्कूल परीक्षा देने निकली थी। जब घर वापस नहीं लौटी तो 14 मार्च 2019 को गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई गई। गन्नी नामक युवक ने पुलिस को बताया कि वह रामभगत के खेत की ओर गया था। जहां एक बालिका का सिर कटा शव देखा है। जिसके बाद पुलिस घटनास्थल पर पहुंची। इसी के साथ अपराध पंजीबद्ध किया गया। पुलिस ने सामूहिक दुष्कर्म व हत्या के मामले में मृतका के दो नाबालिग सहित तीनों सगे भाइयों और चाचा के खिलाफ प्रकरण दर्ज कर न्यायालय में पेश किया था। नाबालिग से दुष्कर्म और उसकी हत्या चाचा के घर में की गई थी।
पहले सुनाई गई थी मृत्युदंड की सजा—
अपर सत्र न्यायाधीश बंडा जिला सागर ने जनवरी 2021में प्रकरण को दुर्लभ से दुर्लभतम मानते हुए सगे भाई रामप्रसाद अहिरवार उम्र 25 वर्ष व चाचा उम्र 45 वर्ष को मृत्युदंड की सजा से दंडित किया था। जिसके खिलाफ दोनों की ओर से हाईकोर्ट में अपील दायर की गई थी। आवेदकों की तरफ से पक्ष रखते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता मनीष दत्त ने युगलपीठ को बताया कि मृतका की आयु 12 साल से कम है। यह अभियोजन सिद्ध नहीं कर पाया है। इसके अलावा आरोपी चाचा के खिलाफ एफएसएल रिपोर्ट पॉजिटिव नहीं है। सिर्फ शर्ट में खून लगे होने के आधार पर उसे आरोपी बना दिया गया था। चाचा लाश मिलने से लेकर अंतिम संस्कार तक बच्ची के शव के साथ रहा और उसे अपनी गोद में लिया था। सिर्फ शर्ट में खून होने के आधार पर उन्हें सजा से दंडित किया गया है।।