उगते सूर्य को अर्घ्य देकर छठ महापर्व का हुआ समापन
छठ घाटों पर उमड़ा रहा आस्था का सैलाब, व्रतियों ने भगवान आदित्य से की परिवार की सुख शाति व प्रगति की कामना

ऑपरेशन टाईम्स सिंगरौली।। सिंगरौली में लोक आस्था का महापर्व छठ बैढन से मोरवा तक सकुशल सम्पन्न हुआ। व्रतियों ने गुरुवार की संध्या अस्तचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया और शुक्रवार की सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत की समाप्ति की। छठ को लेकर गुरुवार की दोपहर से ही व्रतियों के घरों में चहल-पहल बढ़ गयी थी। सभी व्रतियों और उनके परिजनों को घाटों पर पहुंचने की उत्सुकता थी। 3 बजे के बाद से रंग-बिरंगे परिधानों में सजे व्रतियों, बच्चों और उनके परिजनों ने सिर पर दउरा उठाकर घाटों का रुख किया। घाटों पर पहुंचकर व्रतियों ने अपने परिवार की कुशलता, सुख-शांति तथा प्रगति की कामना को लेकर सबसे पहले श्री शोभिता अर्थात् श्री सोप्ता की पूजा की और अस्तचलगामी भास्कर को सुपली में रखे ठेकुआ, आदी, मूली, गन्ना, मिठाई, अर्कपात, सिंघाड़ा और अन्य फलों के साथ पानी में खड़े होकर अर्घ्य दिया। घाटों पर भीड़ से बचने के लिए कुछ लोगों ने अपने घर पर ही घाट बनाकर भगवान सूर्य को अर्घ्य दिया। शुक्रवार की सुबह सूर्योदय होते ही व्रतियों ने फलों व पकवानों के साथ अर्घ्य दिया व अपनी मनोकामना की। उसके बाद व्रतियों ने घर लौटकर पारण कर चार दिवसीय छठ महापर्व की समाप्ति की।
अलसुबह से ही घाटों पर जमा होने लगे थे व्रती और उनके परिजन—
उदित सूर्य को अर्घ्य देने के लिए व्रती और उनके परिजन शुक्रवार की अलसुबह ही घाटों पर जमा होने लगे थे। व्रतियों ने घाटों पर पुनः कोसिया जलाया और परिवार के लिए खुशहाली का आशीर्वाद की कामना करते हुए कोसिया का विसर्जन किया।
भक्तिमय बना था वातावरण—
उगते सूर्य को अर्घ्य देने के लिए व्रतियों ने श्री शोभिता की पूजा की और अपने पारंपरिक गीतों में सूर्य को जल्दी उदय होने की गुहार लगाने लगी। ‘उग हो सुरुज देव अर्घ्य के बेर.. ‘, ‘केलवा के पात पर उगले सूर्यदेव.. ‘, ‘कांच ही बांस के बहंगिया, बहंगी लचकत जाय’. सहित व्रतियों के अनेक भक्तिमय गीतों से सभी घाटों का वातावरण भक्तिमय बन गया था।
छठ पूजा समिति द्वारा की गई थी व्यवस्थाएं—
वैढन से लेकर मोरवा के छठ घाटों पर छठ पूजा समिति के साथ विभिन्न समाज सेवियों द्वारा भी छठ घाटों पर व्रती महिलाओं के अर्घ्य देने के लिए दूध एवं वहां पहुंच रहे श्रद्धालुओं के लिए चाय की व्यवस्था की गई थी। यहां लोगों द्वारा आ रहे श्रद्धालुओं को सुबह-सुबह चाय पिलाकर घाटों के लिए विदा कर रहे थे।