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बंधा कोल प्रोजेक्ट के विस्थापितों ने कंपनी पर लगाये गंभीर आरोप

बिना सहमति के की गयी भू अर्जन की प्रक्रिया, दिया जा रहा कम मुआवजा

ऑपरेशन टाईम्स सिंगरौली।। बंधा कोल प्रोजेक्ट के विस्थापितों ने ईएमआईएल पर गंभीर आरोप लगाये हैं। विस्थापितों का कहना है कि कंपनी से प्रभावित देवरी, पिड़रवाह, बंधा व तेंव्हा में जमीन का एक समान रेट तय कर कंपनी को लाभ पहुंचाने का प्रयास हुआ है। रजिस्ट्री वेंडरों के यहां से जमीन खरीदारों के आधार कार्ड सहित अन्य दस्तावेज लेकर परियोजना के लिए कथित रूप से सहमति तैयार करने के साथ हो सामाजिक समाधात की रिपोर्ट तक को अनदेखा किया गया है। प्रभावित ग्रामीण भू अर्जन कार्यालय में अपने कथित सहमति पत्र की कॉपी पाने के लिए आवेदन दे रहे है, लेकिन उसे यह कहकर खारिज कर दिया जा रहा है कि यहां ऐसा कोई सहमति पत्र नहीं है। संबंधित पंचायतों से सहमति पत्र प्राप्त कीजिए। उधर इस परियोजना की जद में आने वाली तीनों पंचायतों के सरपंचों का कहना है कि उनकी ओर से सहमति पत्र जारी ही नहीं किया गया है। भू- अर्जन प्रक्रिया से जुड़े सूत्रों की मानें तो ऐसे लोगों के नाम सहमति पत्र तैयार कर खुद अंगूठा व हस्ताक्षर बनाए गए हैं जिन्होंने परियोजना आने से पहले ही प्रभावित क्षेत्रों में जमीनें खरीदी थी। रजिस्ट्री वेंडर्स के यहां से उनके आधार कार्ड व अन्य दस्तावेज लेकर इनके नाम से 80 फीसदी सहमति पत्र लेने का कोटा पूरा किया गया है। अब उनमें से ज्यादातर की परिसंपत्ति को धारा प्रकाशन के बाद निर्मित बताया जा रहा है। बंधा को छोड़कर देवरी, पिड़रवाह, तेंदहा में जितनी परिसंपत्तियां स्थित हैं। उनमें दो तिहाई से ज्यादा शासकीय कर्मचारियों की बताई जा रही हैं। इनका अवार्ड भी तैयार कर लिया गया है। जो अगले कुछ दिनों में घोषित कर वेबसाइट पर अपलोड किया जाएगा। बीते दिनों बंधा कोल प्रोजेक्ट के कुछ विस्थापितों ने कलेक्ट्रेट कार्यालय पहुंचकर कलेक्टर से मुलाकात की। उनका कहना था कि कंपनी द्वारा जो नोटिस दी जा रही है उमसें एक हेक्टेयर जमीन का मुआवजा दस लाख अस्सी हजार दिया जा रहा है। उन्होंने बताया कि इस रेट में सिंगरौली जिले में कहीं भी जमीन नहीं मिलेगी। उन्होंने कलेक्टर से मांग किया कि यदि उनकी जमीन ली जा रही है तो इसी रेट पर उन्हें दूसरी जगह पर जमीन दिलायी जाये। विस्थापितों ने बताया कि इसपर जिला कलेक्टर ने कहा कि कंपनी बीस लाख हेक्टेयर का भुगतान करेगी। नीति 2002 का पालन न होने से विस्थापिले में घोर निराशा, आक्रोश व दख व्याप्त है। विस्थापितों का आरोप है कि प्रशासन व कंपनी तालमेल बिठाकर जनता के विरुद्ध भूअर्जन प्रक्रिया कर रहे हैं, जबकि अधिनियम की धारा में कटाप डेट मूल आधार है। उसी के बाद भूअर्जन प्रक्रिया शुरू होती है। इस संबंध में कई बार राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राज्यपाल, मुख्यमंत्री, प्रमुख सचिव, राजस्थ सचिव, कलेक्टर, कमिश्नर व अन्य को आवेदन देने के बाद भी सुधार नहीं किया जा रहा है।

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