इस साल बेंगलुरु और महाकुंभ सहित भगदड़ की 5 घटनाओं में 72 मौतें हो चुकीं, एक्सपर्ट बता रहे कैसे बचें
भीड़ः प्रति वर्ग मीटर दो लोगों से ज्यादा न हों... ड्रोन निगरानी करे

नई दिल्ली।। प्रयागराज महाकुंभ से लेकर बेंगलुरु में आरसीबी के सेलिब्रेशन तक इस साल भगदड़ की 5 बड़ी घटनाओं में 72 लोग मारे गए। भीड़ प्रबंधन विशेषज्ञों का कहना है कि जिस तरह दिल्ली में प्रदूषण का स्तर बदलने के साथ ही इससे निपटने का ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान स्वतः लागू हो जाता है। उसी तर्ज पर भीड़ मैनेज करने के लिए भी अगर ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान लागू हो तो भगदड़ की स्थिति बनने से रोकी जा सकती है। भीड़ प्रबंधन के लिए अब स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर (एसओपी) जरूरत बन गया है। मेला, उत्सव, यात्रा, कथा, स्पोर्ट्स इवेंट, कन्सर्ट, राजनीतिक रैलियां, सामाजिक व सांस्कृतिक आयोजन, रेलवे स्टेशन, मॉल या किसी सेलेब्रिटी का रोड शो जैसे हर कार्यक्रम में भीड़ की स्थिति अलग होती है। लेकिन एक बात जो समान है। वह यह कि भीड़ कितनी जुट सकती है। इसका अंदाजा नहीं लगाया जाता। आयोजक को सुनिश्चित करना होगा कि उसके पास जितनी क्षमता है। उससे अधिक लोग न आएं। आयोजन स्थल पर प्रति वर्ग मीटर में एक या दो से ज्यादा लोग हो रहे हैं तो एंट्री और एग्जिट हर हाल में अलग होने चाहिए। एंट्री और एग्जिट स्पष्ट रूप से चिह्नित हों। भीड़ डायवर्ट करने और रोकने के लिए मजबूत बैरिकेड्स हों। सीसीटीवी, ड्रोन और सेलुलर डेटा से लगातार बढ़ती भीड़ की मॉनिटरिंग होती रहे। भीड़ बढ़ने के साथ ही अलर्ट सिस्टम की व्यवस्था हो। जैसे प्रति वर्ग मीटर में 4-5 लोग होने लगें तो यलो अलर्ट। 5-6 लोग हों तो ऑरेंज अलर्ट। 6 से ज्यादा होने पर रेड अलर्ट की व्यवस्था हो ताकि भीड़ बैरिकेड्स से पहले ही रोक दी जाए। भगदड़ की शुरुआत का स्पष्ट पैटर्न होता है। भगदड़ को रोकने में उसे निर्देशित करने वालों की अहम भूमिका होती है।
कैसी हो एसओपी… बड़े आयोजन से पहले मॉक ड्रिल हो; तकनीक से देखें भीड़ कितनी बढ़ रही—
आयोजन से पहले भीड़ प्रबंधन की डिटेल्ड रिहर्सल और मॉक ड्रिल होनी चाहिए। आयोजक, पुलिस और प्रशासन का समन्वय पहले से तय हो। एआई आधारित एल्गोरिदम से भीड़ का अनुमान, घनत्व और प्रवाह का पूर्वानुमान करने की व्यवस्था हो। जीपीएस, थर्मल कैमरा और ड्रोन से रियल टाइम मॉनिटरिंग और दिशा निर्देश देने के इंतजाम हों। जिस इलाके में भीड़ जमा होगी। उसकी पूरी तरह सीसीटीवी कवरेज और मॉनिटरिंग की व्यवस्था हो। एंट्री पॉइंट, क्रॉसिंग और टर्न पर भगदड़ की संभावना अधिक रहती है। इन्हें रेड जोन मानकर सीसीटीवी के साथ ही मेडिकल टीम भी तैनात करें। भीड़ को टुकड़ों में रोकने के लिए मजबूत बैरिकेड्स हों। साथ ही उन्हें आगे बढ़ाने के स्पष्ट संकेतक हों। बड़े आयोजन में भीड़ संभालने के लिए प्रशिक्षित वॉलंटियर की टीम हो। जो भीड़ का मनोविज्ञान समझे। वैकल्पिक और इमरजेंसी रास्ते कौन से हैं? उस बारे में संकेतकों और उद्घोषणाओं से लगातार बताया जाए।
केस स्टडीः आईआईटी मद्रास दो साल से कर रहा पंढरपुर की वारी यात्रा में साइंटिफिक मदद—
आईआईटी मद्रास ने रियल टाइम में भीड़ का बर्ताव समझने का मॉडल तैयार किया है। इसका एल्गोरिदम भीड़ कंट्रोल करने में इस्तेमाल हो सकता है। संस्थान दो साल से महाराष्ट्र के पंढरपुर उरपुर में में आषाढ़ आषाढ़ एकादशी पर होने वाली भीड़ को संभालने में वैज्ञानिक मदद दे रहा है। वारी यात्रा के दौरान विठोबा मंदिर में 12 से 15 लाख लोग दर्शन करने पहुंचते हैं। प्रो. पीएस महापात्र और प्रो. महेश पंचनगुला के नेतृत्व में संस्थान की टीम ने तमाम मापन और गणना के आधार पर कुछ सिफारिशें दीं। इसके आधार पर पुलिस ने साइंटिफिक क्राउड मैनेजमेंट सिस्टम लागू किया। इन दो वर्षों के दौरान कोई अनहोनी नहीं हुई। संस्थान के विशेषज्ञों का कहना है कि फिजिक्स को समझकर भगदड़ रोकी जा सकती है। घनी भीड़ की गति तरल पदार्थ की तरंगों जैसी होती है। ऐसे में फ्लूइड डायनेमिक्स के नियम बता सकते हैं कि भगदड़ कहां पैदा हो सकती है। एक वर्ग मीटर में यदि 3 लोग हैं तो वे बिना एक दूसरे को छुए आसानी से हिल-डुल सकते हैं। लेकिन इसी स्थान में अगर 6 से ज्यादा लोग होंगे तो यह घनी भीड़ की स्थिति है। इसमें लोग हिल-डुल नहीं सकेंगे और आपस में भिड़ेंगे।आईआईटी किसी भी मंदिर/ट्रस्ट को विज्ञान आधारित भीड़ प्रबंधन प्रणाली तैयार करने में मदद को तैयार है।।