
ऑपरेशन टाईम्स रीवा।। रीवा जिले में अनुकंपा नियुक्तियों की आड़ में किया गया फर्जीवाड़ा अब प्रदेश का सबसे बड़ा शिक्षा घोटाला बनता जा रहा है। शिक्षा विभाग में वर्ष 2025 के भीतर की गई 36 अनुकंपा नियुक्तियों में से 10 मामलों में फर्जी दस्तावेज, जाति विशेष को प्राथमिकता, और नियुक्ति के बाद लापता होने जैसी गंभीर अनियमितताएं सामने आई हैं। इन 10 फर्जी नियुक्तियों में सभी अभ्यर्थी केवल एक जाति 9 कोल समाज 9 से हैं और सभी को अप्रैल 2025 में ही नियुक्ति आदेश थमा दिए गए। जैसे ही जांच की प्रक्रिया शुरू हुई, ये 10 अभ्यर्थी अचानक गायब हो गए। न स्कूल में पहुंचे, न डीईओ कार्यालय में दस्तावेज सत्यापन के लिए उपस्थित हुए।
सालभर की जांच में सामने आईं परतें—
बीते वर्ष डीईओ कार्यालय में एक अनुकंपा नियुक्ति की गड़बड़ी उजागर हुई थी, जिसके बाद प्रभारी लिपिक को निलंबित किया गया था। तब से लेकर अब तक की गई 36 नियुक्तियों की जांच में सामने आया कि कई अभ्यर्थियों ने फर्जी मृत्यु प्रमाण पत्र, पीपीओ और पारिवारिक दावेदारी के सहारे नियुक्ति प्राप्त की। जब रिकॉर्ड सत्यापन के लिए 26 अभ्यर्थियों को बुलाया गया, तो केवल 16 पहुंचे। शेष 10 अभ्यर्थी जो सभी कोल जाति के हैं। फरार हैं।
कुछ गंभीर अनियमितताएं—
एक ही परिवार के भाई-बहन को अलग-अलग स्कूलों में अनुकंपा नियुक्ति दी गई। एक महिला को ऐसे मृत शिक्षक के नाम पर नियुक्त किया गया। जो कभी विभाग में कार्यरत ही नहीं था। एक स्कूल के प्राचार्य द्वारा जब पीपीओ मांगा गया, तो संबंधित अभ्यर्थी स्कूल आना बंद कर दिया।
जांच समिति पर भी सवाल—
संयुक्त संचालक लोक शिक्षण रीवा संभाग नीरव दीक्षित द्वारा गठित तीन सदस्यीय जांच समिति में शामिल डॉ. आरएन पटेल और डॉ. प्रेमलाल मिश्रा पूर्व में चार करोड़ के अनुदान घोटाले में एफआईआर का सामना कर चुके हैं। इससे जांच की निष्पक्षता पर गहरा संदेह जताया जा रहा है।
डीईओ से लेकर जेडी कार्यालय तक संदेह—
इन सभी नियुक्तियों पर पूर्व डीईओ गंगा उपाध्याय और वर्तमान डीईओ सुदामा गुप्ता के हस्ताक्षर पाए गए हैं। जानकारी के अनुसार, प्रति नियुक्ति 5 से 7 लाख रुपये लिए जाने की बात सामने आ रही है। गंगा उपाध्याय ने तो सेवा से मुक्त होने के दिन भी नियुक्ति आदेशों पर हस्ताक्षर किए, जिससे पूरे मामले की गंभीरता और सुनियोजित
प्रशासन की रहस्यमयी चुप्पी—
अब तक न तो किसी आरोपी के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई न ही कोई गिरफ्तारी न ही फर्जी नियुक्तियों को निरस्त किया गया है। विभागीय अधिकारी पूरी तरह मौन हैं। जिनके हस्ताक्षर इन घोटालों में मिले। वे खुलेआम सेवा में बने हुए हैं।
विनोद शर्मा का तीखा हमला—
इस पूरे मामले पर कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता विनोद शर्मा ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा। रीवा जिला भ्रष्टाचार और अपराध का गढ़ बन गया और अभी नया मामला सामने आया रीवा जिले में शिक्षा घोटाले ने प्रदेश की भाजपा सरकार की सच्चाई उजागर कर दी है। यह भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद की पराकाष्ठा है। जब एक ही जाति के 10 लोगों को फर्जी दस्तावेजों पर नौकरी दी जाती है और कोई सवाल नहीं उठाता, तो यह सिर्फ घोटाला नहीं – यह व्यवस्था का अपराध है। हम इस पूरे मामले की ष्टक्छु जांच की मांग करते हैं। श्री शर्मा ने यह भी आरोप लगाया कि उपमुख्यमंत्री के गृह जिले में यह सब कुछ प्रशासनिक संरक्षण में हो रहा है। यदि सरकार में नैतिकता होती तो अब तक सभी जिम्मेदार जेल में होते। रीवा में शिक्षा विभाग नहीं, अब नियुक्तियों का % गुप्त बाज़ार% चलता है जहां दस्तावेज़ नहीं, ‘डील’ होती है.!! सवाल कब होगी कार्रवाई? फर्जी नियुक्तियों को तत्काल निरस्त किया जाए। दोषियों पर सख्त आपराधिक कार्यवाही की जाए। जांच जैसी स्वतंत्र और निष्पक्ष एजेंसी से कराई जाए।
प्रशासन पर तीखी टिप्पणी—
रीवा का प्रशासन इस पूरे मामले में मूकदर्शक की भूमिका में नजर आ रहा है। सवाल यह नहीं कि घोटाला हुआ या नहीं सवाल यह है कि जब पूरा सिस्टम दोषियों को बचाने में जुटा है, तो जनता को न्याय कौन दिलाएगा क्या रीवा में अब शिक्षा नहीं, सिर्फ सिफारिश और सौदा ही योग्यता है क्या डीईओ कार्यालय अब भर्ती कार्यालय नहीं, रिश्वत केंद्र बन गया है यदि अब भी कोई सख्त कार्यवाही नहीं होती, तो यह साफ होगा कि प्रशासन इस पूरे भ्रष्टाचार में हिस्सेदार है, और यह घोटाला सिर्फ नौकरियों का नहीं, न्याय और लोकतंत्र के भरोसे का भी कत्ल है।