
जब दर्द ने लिया आंदोलन का रूप—
लीला साहू का संघर्ष तब शुरू हुआ जब उनके गांव की दो महिलाओं ममता और सीमा सड़क न होने के कारण समय पर अस्पताल नहीं पहुंच सकीं और उनकी जान चली गई। ममता उनकी भाभी थीं जिन्हें खटिया पर उठाकर ले जाया गया लेकिन देर हो चुकी थी। लीला ने तब एक वीडियो जारी कर नेताओं से पूछा हमने 29 सीटें दिलाईं। अब हमारी सड़क क्यों नहीं बन रही? उनका वीडियो वायरल हुआ और देशभर में चर्चा का विषय बना। लेकिन वादे और तस्वीरों के बावजूद गांव की हालत जस की तस रही।
विधायक ने निजी खर्च से शुरू कराया काम—
21 जुलाई को विधायक (राहुल भैया) ने लीला से संपर्क कर सड़क बनवाने की जिम्मेदारी निजी खर्च पर उठाई। जेसीबी मशीनें गांव में पहुंचीं और रास्ते को अस्थायी रूप से समतल किया गया। विधायक प्रतिनिधि ज्ञानेंद्र अग्निहोत्री ने कहा जब एक गर्भवती महिला सड़क की मांग के लिए गुहार लगाए।
हेलीकॉप्टर की मांग—
लीला की हेलीकॉप्टर की मांग सिर्फ एक व्यक्तिगत आवश्यकता नहीं बल्कि सिस्टम पर तीखा प्रहार है। एक ऐसे गांव में जहां सड़क नहीं वहां गर्भवती महिला को अस्पताल ले जाने के लिए हेलीकॉप्टर ही विकल्प बचता है। ये सोचने पर मजबूर करता है।
अभी भी अधूरी है लड़ाई—
लीला ने साफ कहा यह शुरुआत है जीत नहीं। रास्ता पक्का बने। तब जाकर हम कहेंगे कि हमारी लड़ाई सफल हुई। अब गांव की महिलाएं खुलकर सामने आ रही हैं। प्रशासन की चुप्पी पर सवाल उठ रहे हैं और नेताओं के वादे फिर कसौटी पर हैं।।